'औपनिवेशिक से मुक्ति के लिए भाषा महत्वपूर्ण', वाराणसी में बोले केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान

औपनिवेशिक मानसिकता को ‘मैकाले मानसिकता’ करार दिया
वाराणसी में ‘काशी तमिल संगमम 4.0’
वाराणसी में ‘काशी तमिल संगमम 4.0’
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वाराणसी : केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मंगलवार को कहा कि औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर निकलने के लिए भाषा एक प्रमुख साधन है। उन्होंने औपनिवेशिक मानसिकता को ‘मैकाले मानसिकता’ करार दिया।

प्रधान ने वाराणसी में ‘काशी तमिल संगमम 4.0’ के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राम मंदिर के ऊपर भगवा झंडा फहराने के लिए अयोध्या का दौरा किया था, तब उन्होंने देशवासियों से एक अपील की थी।

प्रधान ने कहा, 1835 में मैकाले नाम का एक आक्रांता भारत आया और उसने भारतीय सभ्यता के खिलाफ एक षड्यंत्र रचा। उसने भाषा को एक नकारात्मक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। भारत आज एक स्वतंत्र देश है। तब से 190 साल हो गए हैं और हमें औपनिवेशिक मानसिकता ‘मैकाले मानसिकता’ से बाहर आना होगा।

उन्होंने कहा कि अंग्रेजी पर ‘निर्भर’ रहने की कोई आवश्यकता नहीं है। जिन्हें कुछ नया करना है, उन्हें अपनी मातृभाषा तमिल, पंजाबी, गुजराती, मराठी और हिंदी में माहिर होना होगा, तभी वे समाज के लिए कुछ नया कर सकते हैं।

प्रधान ने कहा, प्रधानमंत्री ने औपनिवेशिक मानसिकता सोच से बाहर आने की अपील की है। भाषा औपनिवेशिक मानसिकता सोच से बाहर आने का एक मुख्य जरिया है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 नवंबर को अयोध्या में राम मंदिर के ऊपर भगवा झंडा फहराने के बाद एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि यह पल देश के लिए एक सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रतीक है।

मोदी ने देश को ‘गुलामी की सोच’ से आजाद करने की जरूरत को दोहराते हुए कहा था कि भारत को अपनी सभ्यता की पहचान पर गर्व होना चाहिए। मैकाले ने 190 साल पहले भारत को उसकी जड़ों से उखाड़ने के बीज बोए थे। हमें आजादी तो मिली लेकिन हीन भावना से आजादी नहीं मिली।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अगले 10 साल इस सोच को बदलने के लिए समर्पित होने चाहिए। मोदी ने यह भी कहा था कि औपनिवेशिक समय की गलतफहमियों की वजह से यह माना जाने लगा कि भारत ने विदेश से लोकतंत्र उधार लिया है।

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