पीट-पीट के मारने के आरोप में काट ली 38 साल सजा, अब हाई कोर्ट ने 3 आरोपियों को बताया निर्दोष

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन आरोपियों को इस आधार पर बरी कर दिया कि हत्या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा की गई थी।
पीट-पीट के मारने के आरोप में काट ली 38 साल सजा, अब हाई कोर्ट ने 3 आरोपियों को बताया निर्दोष
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प्रयागराजः इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हत्या के मामले में आजीवन कारावास के तहत 38 साल की जेल काटने के बाद तीन आरोपियों को इस आधार पर बरी कर दिया कि यह हत्या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा की गई थी।

सजा के खिलाफ अपील स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति जेजे मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने कहा कि घटनास्थल पर अभियोजन पक्ष के गवाहों की मौजूदगी अत्यधिक संदेहपूर्ण है और ऐसा लगता है कि उन्होंने घटना नहीं देखी और वे मौके पर तब पहुंचे जब व्यक्ति की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी तथा अन्य ग्रामीण वहां पहुंच चुके थे।

अपीलकर्ताओं का आरोप था कि उस गांव में दलगत राजनीति होती है और पार्टीबंदी की वजह से उन्हें फंसाया गया है। तथ्यों के मुताबिक, आठ जुलाई, 1982 को अपीलकर्ताओं द्वारा शिकायतकर्ता के भाई की पीटकर कथित रूप से हत्या कर दी गई थी। तहरीर में कहा गया था कि शिकायतकर्ता यदि अपने भाई की मौत के बारे में पुलिस को सूचना देगा तो उसे जान से मार दिया जाएगा। इस मामले में इलाहाबाद के सोरांव थाने में सभी 11 आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

निचली अदालत ने 13 अप्रैल, 1987 को दोषी ठहराया था

निचली अदालत ने गवाहों के बयान और साक्ष्यों पर गौर करने के बाद 13 अप्रैल, 1987 को आरोपियों को हत्या का दोषी ठहराया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके बाद, सभी आरोपियों ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी। हालांकि, अपील लंबित रहने के दौरान 11 में से आठ अपीलकर्ताओं की मृत्यु हो गई।

उच्च न्यायालय ने 18 दिसंबर 2025 को दिए अपने निर्णय में कहा कि मामले में पेश साक्ष्यों में भारी विरोधाभास है और अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे अपने मामले को साबित करने में विफल रहा। पीठ ने कहा कि निचली अदालत के न्यायाधीश ने रिकॉर्ड में पेश साक्ष्यों को सही परिपेक्ष्य में नहीं समझा और गलत निष्कर्ष निकाला।

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गवाहों के बयान में तारतम्यता नहीं

मृतक के भाई और चाचा की गवाहियों के संबंध में उच्च न्यायालय ने कहा कि इस बात की कोई सूचना नहीं है कि मृतक को पीटे जाने के बारे में सूचना उसके चाचा को किसने दी। पीठ ने कहा कि जिस अज्ञात व्यक्ति ने चाचा को सूचना दी, वह सीधे मृतक के भाई को भी सूचना दे सकता था। अदालत ने पाया कि जिस समय मृतक के भाई को सूचना दी गई तब से लेकर उसके और ग्रामीणों के मौके पर पहुंचने तक कम से कम एक घंटे का समय लगा और यह संभव नहीं है कि 11 हमलावर व्यक्ति को जान से मारने के इरादे से एक घंटे तक पीटते रहे होंगे और शव पर चोट के केवल 10 निशान पड़ेंगे।

अदालत ने यह भी कहा कि कोई व्यक्ति यह सूचना पाकर कि उसके भाई को पीटा जा रहा है, घटनास्थल पर खाली हाथ नहीं जाएगा और सबसे छोटे मार्ग से मौके पर पहुंचेगा जबकि यहां शिकायतकर्ता और उसके चाचा खाली हाथ गए और लंबा मार्ग लिया जिससे संदेह पैदा होता है।

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