कोलकाता ने मुझे गंभीर सिनेमा सिखाया, बॉलीवुड में बहुत ईगो है, पैसा भारी है कला परः मुजफ्फर अली

मशहूर फिल्म निर्माता निर्देशक मुजफ्फर अली ने गोवा में चल रहे भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सिनेमा पर अपने विचार रखे।
कोलकाता ने मुझे गंभीर सिनेमा सिखाया, बॉलीवुड में बहुत ईगो है, पैसा भारी है कला परः  मुजफ्फर अली
Published on

सर्जना शर्मा

मशहूर फिल्म निर्माता निर्देशक मुजफ्फर अली ने गोवा में चल रहे भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सिनेमा पर अपनी सोच सिनेमा से दिल का रिश्ता, 'गमन' से 'उमराव जान' तक का सफर, 'जूनी' फिल्म न बन पाने, बॉलीवुड में फिल्म निर्माण में कलात्मकता के बजाए पैसे को ज्यादा महत्व दिए जाने जैसे विषयों पर खुल कर बात की।

सिनेमा और संस्कृति दो युगों के प्रतिबिंब विषय पर उनके साथ संवाद किया उनके ही बेटे शाद अली ने जो कि स्वयं भी एक फिल्म निर्माता हैं। पिता-पुत्र का यह संवाद भविष्य में फिल्म जगत में जाने वाले छात्र- छात्राओं के लिए रखा गया था। इस बार इफ्फी 2025 में सिनेमा जगत के दिग्गज युवा पीढ़ी को बहुत दिलचस्प तरीके से मास्टर क्लास दे रहे हैं। सन्मार्ग के पाठकों के लिए प्रस्तुत है पिता-पुत्र के संवाद में मुजफ्फर अली ने क्या कहा, कुछ विशेष अंशः

बचपन से सिनेमा देखने का शौकीन

मैं बचपन में चित्रकारी का शौकीन था। मुझे क्लास में बेहतरीन पेंटिग के लिए अवॉर्ड मिलते थे । किसी ने समझाया पेंटिंग करने से अच्छा है शायरी में ध्यान दो, शायरी पेंटिंग से ज्यादा बांधने वाली होती है। लोग ध्यान से सुनते हैं। साथ ही ये भी कहा कि खुद शायरी मत करना बस रुचि रखना। सिनेमा देखने का भी मैं बहुत शौकीन था। लखनऊ में जितने फिल्म थियेटर थे, सबमें फिल्म देखने जाता था। जब विज्ञापन कंपनी में नौकरी करने कोलकाता गया तो सिनेमा के प्रति मेरी धारणा ही बदल गयी। मैंने बचपन से बॉलीवुड सिनेमा देखा था।

भावनाओं में पिरोयी होती हैं कोलकाता की फिल्में

बंगाल का सिनेमा बहुत गंभीर था। सत्यजीत रे का सिनेमा कलात्मकता में गूंथा हुआ होता था जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते थे। वो सत्यजीत रे अपनी फिल्मों में पर्दे पर उतार देते थे। कोलकाता का सिनेमा भावनाओं में पिरोया होता था जिसे दिल से महसूस करके बनाया जाता था। कोलकाता ने मुझे अच्छा सिनेमा बनाना सिखाया, सिनेमा की कहानी को, पात्रों को, संगीत को पहले दिल में उतारना पड़ता है, तब जाकर दिल को छू लेने वाली यादगार फिल्म बनायी जाती है।

'गमन' को रजत मयूर पुरस्कार मिला

कोलकाता से मैं मुंबई आया। यहां एयर इंडिया में नौकरी की। यहां लोकल ट्रेन में हर रोज घर से दफ्तर जाते समय मैंने महसूस किया कि अपना घर, अपना परिवार,अपना गांव छोड़ कर पराए शहर में आ कर रोजी-रोटी कमाने का दर्द क्या होता है। जो दिल से महसूस किया, उसको 'गमन' फिल्म का रूप दिया जो कि 1978 में रिलीज हुई और सातवें अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में दिखायी गयी। इसको रजत मयूर पुरस्कार मिला। इसके गीत दिल से लिखे गए, दिल से म्यूजिक कंपोज किया गया। इसका गाना-'सीने में जलन, आंखों में तूफान सा क्यों है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूं है'- बहुत हिट हुआ, सबके दिल को छू गया।

बॉलीवुड में कलात्मक अभिव्यक्ति की आजादी नहीं

बॉलीवुड फिल्म में कलात्मक अभिव्यक्ति की आजादी नहीं देता। यहां लोगों का ईगो बहुत ज्यादा है। पैसे के लिए फिल्म की आत्मा की परवाह भी नहीं करते, जबकि मेरे लिए सिनेमा दिल का मामला है, भावनाओं का मामला है। बॉलीवुड में बहुत सीमाएं हैं। वहां बहुत सारी शर्तें होती हैं। मसलन, आप इस गायक को ही लोगे, इस संगीतकार को ही लोगे। वहां पैसा अहम है। मैं कैमरामैन, शायर संगीतकार, कलाकार सबसे दोस्ती करता हूं। पहले उनके सामने झुक जाता हूं, आत्मसमर्पण करता हूं। उनको अपने दिल के करीब ला कर फिल्म बनाता हूं। इसलिए कम फिल्में बना पाया।

'जूनी' पूरी नहीं हो पाने की ये रही वजह

'उमराव जान' 'गमन' से अलग किस्म की फिल्म थी, लेकिन वो मेरे शहर लखनऊ की थी। मुस्लिम समाज के ताने-बाने को मैंने बहुत पास से देखा है। मैंने इस फिल्म की शायरी शहरयार से लिखवायी और संगीत खय्याम ने दिया था। हमने शहरयार की शायरी को संगीत देने के लिए महीनों रात-रात भर जाग कर काम किया। और उमराव जान के गाने यादगार बन गए।

कश्मीर की पृष्ठभूमि पर 'जूनी' पूरी नहीं हो पायी क्योंकि मैं चाहता था फिल्म की नायिका चारों ऋतुओं को जीये। मैं भी चारों सीजन जीना चाहता था, लेकिन ये नहीं हो पाया। 'जूनी' में 600 साल पहले का कश्मीर दिखाना था, सब करते करते समय लगा। फिर घाटी में ऐसे हालात हो गए कि वहां काम कर पाना संभव नहीं हो पाया। इसका मेरे दिल-दिमाग, माली हालत पर बहुत असर पड़ा और मेरा झुकाव सूफी की ओर हो गया। जिसने मेरे मन को शांति दी। मैंने जहान -ए खुसरो कार्यक्रम शुरू किया। मैं आज भी मानता हूं कि सिनेमा दुनिया को बदल सकता है, भाईचारा ला सकता है, दिलों को जोड़ सकता है।

संबंधित समाचार

No stories found.

कोलकाता सिटी

No stories found.

खेल

No stories found.
logo
Sanmarg Hindi daily
sanmarg.in