
सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : जन्म तिथि के मामले में अगर कोई दस्तावेजी सुबूत नहीं हो तो मेडिकल बोर्ड के आकलन में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। डीवीसी के एक मामले में हाई कोर्ट के जस्टिस अनिरुद्ध राय ने यह आदेश दिया है। उन्होंने अपने आदेश में कहा है कि अगर किसी कर्ल्क से कोई गलती हो गई हो तो यह अलग बात है, इसमें संशोधन कर सकते हैं। यहां गौरतलब है कि जन्म तिथि के बाबत अगर कोई दस्तावेजी सुबूत नहीं हो तो मेडिकल बोर्ड उम्र का आकलन करता है।
एडवोकेट अमृता पांडे ने यह जानकारी देते हुए बताया कि पीटिशनर गंगाधर मंडल को अनुकंपा के आधार पर डीवीसी में 1995 में नियुक्ति मिली थी। उस समय उसने एक स्कूल सर्टिफिकेट पेश किया था जिसके अनुसार उसकी जन्म तिथि 10 दिसंबर 1968 थी। प्रबंधकों ने इसे मानने से इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि इसे जिला शिक्षा अधिकारी ने अटेस्ट नहीं किया था। इसके बाद डीवीसी के रूल्स के आधार पर पीटिशनर की उम्र का आकलन करने के लिए मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया। मेडिकल बोर्ड ने 1998 में 12 जून को दाखिल अपनी रिपोर्ट में कहा कि पीटिशनर की उम्र 30 साल है। इसके बाद पीटिशनर ने 1999, 2023 और 2025 में आधार कार्ड, पैन कार्ड और वोटर कार्ड पेश करके दावा किया कि उसकी जन्म तिथि 10 दिसंबर 1968 है और इसे सर्विस बुक में दर्ज किया जाए। डीवीसी ने इसे मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद उसने हाई कोर्ट में रिट दायर कर दी। जस्टिस राय ने अपने आदेश में कहा है कि डीवीसी सर्कुलर के मुताबिक बकायदे अटेस्टेड जन्म तिथि प्रमाणपत्र देना पड़ता है और अगर यह उपलब्ध नहीं है तो मेडिकल बोर्ड उम्र का आकलन करता है। पीटिशनर जन्म तिथि का प्रमाणपत्र पेश नहीं कर पाया था। इसलिए मेडिकल बोर्ड से आकलन कराना पड़ा था। इसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है।