भत्ता दिए जाने पर हाई कोर्ट ने लगाया अंतरिम स्टे
सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : ग्रुप सी और डी के बर्खास्त कर्मचारियों को भत्ता दिए जाने की सरकार की योजना पर हाई कोर्ट ने 26 जुलाई तक अंतरिम स्टे लगा दिया है। हाई कोर्ट की जस्टिस अमृता सिन्हा ने इस बाबत दायर रिट पर सुनवायी के बाद अपने फैसले को आरक्षित कर लिया था। शुक्रवार को उन्होंने अपना फैसला सुनाया। जस्टिस सिन्हा ने अपने फैसले में कहा है कि सरकार की यह योजना कानून के प्रावधानों के बिल्कुल उलट है। उन्होंने सवाल किया है कि कोई काम कराए बगैर सरकार किसी को किस तरह भुगतान कर सकती है। इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि इस मद में दी गई रकम की वापसी की कोई संभावना नहीं है।
एडवोकेट गोपा विश्वास ने बताया कि नियुक्ति घोटाले की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने ग्रुप सी के 1255 और ग्रुप डी के 2139 कर्मचारियों को बर्खास्त किए जाने का आदेश दिया था। राज्य सरकार ने ग्रुप सी के कर्मचारियों को 25 हजार रुपए और ग्रुप डी के कर्मचारियों को 20 हजार रुपए मासिक भत्ता दिए जाने की योजना बनायी है। इसे हाई कोर्ट में रिट दायर करके चुनौती दी गई थी। इस मामले में पीटिशनर शिशिर विश्वास की तरफ से एडवोकेट विकास रंजन भट्टाचार्या और एडवोकेट फिरदौश शमीम ने बहस की थी। एडवोकेट जनरल ने राज्य सरकार का पक्ष रखा था। जस्टिस सिन्हा ने अपने फैसले में कहा है कि इस योजना में सरकार ने भत्ता पाने वालों से कोई काम लेने का प्रावधान नहीं बनाया है। इस योजना के तहत सामान्य रूप से बेरोजगारों को कोई भत्ता नहीं दिया जाएगा। इससे उलट यह लगता है कि सरकार उन्हें वित्तीय मदद दे रही है, जिनकी नौकरी कोर्ट के आदेश के बाद इस आधार पर चली गई है कि उन्होंने धोखाधडी और चीटिंग कर के नौकरी हासिल किया था। राज्य उन्हें भुगतान करने के लिए बाध्य है जो सरकार को अपनी सेवा देते हैं। राज्य सरकार दाता की तरह उन लोगों को रकम दे रही है जो राज्य को कोई सेवा नहीं दे रहे हैं, बल्कि घर में बैठे हुए हैं या फिर कहीं अन्यत्र किसी काम से जुड़े हैं। राज्य सरकार को इस योजना को जारी रखने की अनुमति देने का अर्थ धोखाधड़ी और चीटिंग को समर्थन दिया जाना है। देश की सर्वोच्च अदालत ने अवैध नियुक्तियों के मामले में अपना निर्णायक फैसला सुनाते हुए कहा है कि ये नियुक्तियां धोखाधड़ी करके हासिल की गई थी। ऐसे में इस तरह के लोगों को सरकारी खजाने से भुगतान किए जाने का कोई औचित्य नहीं है। जस्टिस सिन्हा ने कहा है कि सरकार ने यह योजना अभी हाल ही में बनायी है इसलिए एफिडेविट दाखिल करके उसे सुनने का मौका दिया जाना चाहिए। सरकार को चार सप्ताह के अंदर एफिडेविट दाखिल करना पड़ेगा और विपक्ष चाहे तो दो सप्ताह के अंदर इसका जवाब दे सकता है। इसके बाद मामले की सुनवायी होगी।

