दिल्ली विस्फोट के साये में सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा- संदेश भेजने के लिए सबसे अच्छा समय

सुप्रीम कोर्ट ने आईएसआईएस से कथित रूप से जुड़े एक व्यक्ति को जमानत देने से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट
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नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने प्रतिबंधित संगठन इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) से कथित रूप से जुड़े एक व्यक्ति को जमानत देने से मंगलवार को यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उस पर देश में ‘‘आतंक का घेरा’’ बनाने के प्रयास का आरोप है।

दिल्ली में लाल किले के पास हुए विस्फोट के एक दिन बाद हुई सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि यह "संदेश भेजने के लिए सबसे अच्छा समय" है। लाल किले के पास विस्फोट में कम से कम 12 लोग मारे गए।

हाई कोर्ट के फैसले को दी गई थी चुनौती

पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि सोमवार को जो कुछ हुआ उसके बाद मामले पर बहस करने के लिए यह ठीक समय नहीं है। पीठ आरोपी सैयद मामूर अली द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें जमानत देने से इनकार करने के मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के जनवरी के आदेश को चुनौती दी गई। यह मामला गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत कथित अपराधों के लिए दर्ज किया गया था। याचिकाकर्ता को मई 2023 में इस मामले में गिरफ्तार किया गया था, जिसकी जांच राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी के व्हाट्सऐप ग्रुप पर सवाल पूछा

मंगलवार की सुनवाई के दौरान, पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से मामले में हुई बरामदगी के बारे में पूछा। पीठ ने पूछा, "फिलहाल गवाहों को भूल जाइए, आप बरामदगी को कैसे समझाएंगे?" पीठ ने कहा कि यह आरोप लगाया गया है कि आरोपी ने आईएसआईएस जैसा ही एक व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया था। पीठ ने पूछा, "इसके पीछे क्या इरादा था?"

पीठ ने कहा कि आरोपी के खिलाफ आरोप तय कर दिए गए हैं और उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है। पीठ ने कहा, "आप पर देश में आतंक का माहौल बनाने की कोशिश करने का आरोप है। क्षमा करें।" अदालत ने कहा कि आरोपी भारत में अशांति पैदा करने की कोशिश कर रहा था।

विवादास्पद इस्लामी उपदेशक जाकिर नाइक का उल्लेख

वकील ने कहा कि कोई विस्फोटक बरामद नहीं हुआ और याचिकाकर्ता, जो ढाई साल से हिरासत में है, 70 प्रतिशत दिव्यांग है। पीठ ने ज़मानत याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। हालांकि, पीठ ने निचली अदालत को मामले की सुनवाई दो साल के भीतर पूरी करने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा, "यदि याचिकाकर्ता की किसी गलती के बिना भी उक्त अवधि के भीतर सुनवाई पूरी नहीं होती है, तो याचिकाकर्ता जमानत के लिए अपनी याचिका फिर से दायर कर सकता है।’’

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि एनआईए ने जांच शुरू की, जिसमें यह पता चला कि 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान, आरोपियों ने विवादास्पद इस्लामी उपदेशक जाकिर नाइक के वीडियो के माध्यम से धर्मों की तुलना के बारे में ज्ञान प्राप्त करना शुरू कर दिया था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि आरोपपत्र में लगाए गए आरोपों के अनुसार, आरोपी अन्य लोगों के साथ आईएसआईएस से जुड़ा था और उसके पास आतंकवादी संगठन के झंडे से मिलते-जुलते कई दस्तावेज और पर्चे थे।

यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपी ने अन्य लोगों के साथ मिलकर मध्य प्रदेश के जबलपुर में एक आयुध कारखाने पर हमला करने की साजिश रची थी ताकि आईएसआईएस की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए बड़ी मात्रा में हथियार जुटाए जा सकें।

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