1952 -2024, जानिए दिल्ली का चुनावी इतिहास

दिल्ली के चुनावी इतिहास की झलक
1952 -2024, जानिए दिल्ली का चुनावी इतिहास
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नई दिल्ली - आप सभी का पता है कि दिल्ली भारत की राजधानी है। वर्तमान में दिल्ली में चुनाव चल रहे हैं। दिल्ली के चुनाव देश के अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों से कई मामले में अलग है। दिल्ली का चुनावी इतिहास बड़ा जोरदार है। 1952 में जब पहली बार विधानसभा चुनाव हुए तब से लेकर अब तक दिल्ली ने कई बदलाव देखे हैं।

आपको बता दें कि 1956-1993 तक दिल्ली की विधानसभा को भंग करके इसे केंद्र शासित प्रदेश बना ‌दिया गया था। वर्तमान में दिल्ली पर आम आदमी पार्टी ने अपना दबदबा बलाए रखा है। आज हम दिल्ली के चुनावी इतिहास की तरफ अपना रुख करेंगे।

दिल्‍ली का पहला विधानसभा चुनाव

1951-52 के पहले विधानसभा चुनाव में दिल्ली में 42 निर्वाचन क्षेत्र थे और कुल 48 सीटें थी। इस चुनाव में कांग्रेस ने 39 सीटें जीती और अपनी सरकार बनाई। चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने लेकिन तत्कालीन मुख्य आयुक्त एडी पंडित के बीच टकराव के चलते 1955 में उन्होंने इस्तीफा दे‌ दिया। उनके बाद गुरुमुख निहाल सिंह नए मुख्यमंत्री बने। इसके बाद 1956 में दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया और विधानसभा भंग कर ‌दी गई।

1991 में दिल्ली को मिला नया विधानसभा

काफी संघर्ष के बाद 1991 में नरसिम्हा राव सरकार ने दिल्ली को सीमित अधिकारों के साथ एक विधानसभा देने का निर्णय किया। इस फैसले के बाद 1993 में दिल्ली में 70 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुनाव हुए। इस चुनाव में भाजपा ने 49 सीटें जीती और भाजपा की तरफ से मदन लाल खुराना सीएम बने।

सीएम बनने के कुछ वर्ष बाद 1995 हवाला कांड में उनका नाम आने की वजह से उन्हें पद छोड़ना पड़ा और साहिब सिंह वर्मा नए सीएम बने। 1998 में भापजा ने सीएम बदलकर सुषमा स्वराज को चुना लेकिन वह कांग्रेस की वापसी को रोक नहीं पाई।

1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 52 सीटें जीतकर अपनी सरकार बनाई। कांग्रेस की तरफ से शीला दीक्षित को सीएम बनाया गया। उन्होंने दिल्ली मेट्रो, फ्लाईओवर निर्माण और सीएनजी बसों जैसी कई योजनाओं के दम पर दिल्ली का चेहरा बदल दिया। इसके बाद 2003 और 2008 के भी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 47 और 43 सीटें जीतकर सत्ता को बरकरार रखा। यह वह दौर था जब शीला दीक्षित को दिल्ली कांग्रेस की महारानी कहा जाता था।

इसके बाद आया वर्ष 2013 जिस वक्त अन्ना आंदोलन चल रहा था। अन्ना आंदोलन से आम आदमी पार्टी ने जन्म लिया। इसके बाद एक कमाल हुआ। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 31, आम आदमी पार्टी ने 28 और कांग्रेस ने 8 सीटें जीती। तीनों में से कोई भी दल पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर सका।

इसके बाद अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। सरकार बनने के 49 दिनों के बाद ही लोकपाल बिल पास न हो पाने के कारण केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया और दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।

इसके बाद आया वर्ष 2015 जो की आम आदमी पार्टी के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ। 2015 के विधानसभा चुनाव मे आप ने 70 में से 67 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। भाजपा केवल 3 सीटें जीत पाई और कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया। इसके बाद एक बार फिर केजरीवाल ने सीएम पद की शपथ ली और उनकी सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्‍य और बिजली जैसे मुद्दों पर काम करने का वादा ‌किया।

वर्ष 2020 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 62 सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखी। इस बार भाजपा 8 सीटें जीत पाई और एक बार फिर कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया। इस बार भी जनता ने केजरीवाल पर भरोसा जताया। आज यानी 5 फरवरी 2025 को दिल्ली में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी वापसी कर पाएगी या आम आदमी पार्टी एक बार फिर जीत कर अपनी सरकार कायम रखेगी।

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