

पुरी : जब भी हम भगवान जगन्नाथ की बात करते हैं तब सबसे पहले रथ यात्रा का ही ख्याल आता है। यह यात्रा वास्तव में बहुत खास होती है और इसमें देश विदेश से लोग हिस्सा लेते हैं। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी शामिल होते हैं।
यह यात्रा 12 दिनों तक चलती है और इसका विशेष महत्व होता है। आज भी भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान मौसी के घर गुंडिचा देवी मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। वहीं एक प्रथा है कि जगन्नाथ मंदिर के मंदिर की मूर्तियां आज भी अधूरी हैं और हर 12 साल बाद इन्हें बदला जाता है।
12 साल बाद क्यों बदली जाती हैं मूर्तियां
ऐसा माना जाता है कि जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियां हर 12 साल के बाद बदली जाती है। दरअसल जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और बहन सुभद्रा की लकड़ी की मूर्तियां हैं। इन मूर्तियों को हर 12 साल में बदलने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
यही नहीं जिस समय मूर्तियां बदली जाती हैं उस समय पूरे शहर की बत्तियां बंद कर दी जाती हैं और हर जगह अंधेरा कर दिया जाता है। यह इस वजह से किया जाता है जिससे मूर्तियों को बदलने की प्रक्रिया को गोपनीय रखा जा सके। मूर्तियों को बदलते समय केवल एक मुख्य पुजारी वहां मौजूद होता है और उसकी आंखों में भी पट्टी बांध दी जाती है। यह इसलिए किया जाता है जिससे कि मूर्तियों को बदलने की प्रक्रिया पूरी तरह से गोपनीय रहे।
पुरी में आज भी धड़कता है श्री कृष्ण का दिल
ऐसी मान्यता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी देह त्यागी उस समय उनका दिल पुरी में ही रह गया और आज भी वो मूर्तियों के बीच ब्रह्म रूप में मौजूद हैं। जिस समय श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार हुआ वह अपना ह्रदय छोड़ गए। यहां की मूर्तियों में साक्षात रूप में भगवान जगन्नाथ मौजूद होते हैं, इसलिए उनके पूजन को आज भी भक्त शुभ मानते हैं।
मूर्तियां बदलने की प्रक्रिया नवकलेबारा होती है
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को हर 12 साल में बदला जाता है और इस अनुष्ठान को नवकलेबारा नाम दिया जाता है। इसके कई कारण माने जाते हैं जिनमें से कुछ के बारे में हम आपको बता रहे हैं –
नवकलेबारा अनुष्ठान की ख़ास बातें