नई दिल्ली: आईसीएआर-राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (आईसीएआर-एनबीपीजीआर), पूसा फार्म, नई दिल्ली में ‘जर्मप्लाज्म विविधता दिवस – 2025’ का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में कई वैज्ञानिक, रिसर्चर और कृषि विशेषज्ञों मौजूद रहें।
इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उप महानिदेशक (फसल विज्ञान) डॉ. डी. के. यादव ने जर्मप्लाज्म विविधता और आनुवंशिक संसाधनों की महत्ता के बारे में बताया। इसके अलावा देशभर के 15 प्रतिष्ठित संस्थानों से आए लगभग 50 प्रतिभागियों ने इस आयोजन में भाग लिया। जिनमें आईसीएआर-आईएआरआई, नई दिल्ली; एआईसीआरपी, हैदराबाद; आईसीएआर-आईआईओआर, हैदराबाद; आईसीएआर-आईआईपीआर, कानपुर; आईसीएआर-आरसीईआर, पटना; एएनडीयूएटी, अयोध्या और सीएसकेएचपीकेवी, पालमपुर सहित कई संस्थान शामिल थे।
कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि द्वारा संस्थान की एक नई सुविधा के उद्घाटन के साथ हुआ। उद्घाटन सत्र में डॉ. आर.के. गौतम (अध्यक्ष , जर्मप्लाज्म मूल्यांकन प्रभाग) ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। इसके पश्चात आईसीएआर-एनबीपीजीआर के निदेशक, डॉ. जी.पी. सिंह ने जर्मप्लाज्म संरक्षण के महत्व पर अपने विचार साझा किए।
कार्यक्रम के दौरान डॉ. कुलदीप त्रिपाठी (वरिष्ठ वैज्ञानिक, आईसीएआर-एनबीपीजीआर) के नेतृत्व में प्रतिभागियों को क्रॉप वाइल्ड रिलेटिव गार्डन सहित संस्थान के पूसा फार्म में विभिन्न फसलों के उगाए गए 3700 जनद्रव्यों का भ्रमण कराया गया। जहां 171 जननद्रव्य प्रदर्शित किए गए। साथ ही, लथायर्स (264 जननद्रव्य), मसूर (143 जननद्रव्य) और फावा बीन (751 जननद्रव्य) के प्रारंभिक मूल्यांकन की जानकारी दी गई। इसके अतिरिक्त, गेहूं, अलसी, मेथी और जौ के जर्मप्लाज्म को प्रतिकूल परिस्थितियों के प्रति सहिष्णुता के लिए मूल्यांकित किया जा रहा था।
प्रतिभागियों ने एमटीए (Material Transfer Agreement) और जर्मप्लाज्म साझा करने के दिशा-निर्देशों पर आयोजित सत्र में भाग लिया, जिसका संचालन डॉ. प्रज्ञा, प्रधान वैज्ञानिक, जर्मप्लाज्म विनिमय प्रभाग, आईसीएआर-एनबीपीजीआर ने किया। कार्यक्रम के अंत में डॉ. कुलदीप त्रिपाठी ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।
जबकि अन्य विशिष्ट अतिथियों में डॉ. जे.सी. राणा (देश प्रतिनिधि, बायोडायवर्सिटी इंटरनेशनल और सीआईएटी गठबंधन, भारत), डॉ. एस.के. अग्रवाल (प्रधान, खाद्य दलहन अनुसंधान प्लेटफॉर्म, आईसीएआरडीए), डॉ. सैलेश त्रिपाठी (परियोजना समन्वयक, एआईसीआरपी-रबी दलहन) और डॉ. वी.के. यादव (परियोजना समन्वयक, एआईसीआरपी-चारा फसलें एवं उपयोग) शामिल थे।