

नई दिल्ली: संसद की स्थायक समिति (अध्यक्ष: कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह) ने शिक्षा ऋण पर अपनी 372वीं रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में पिछले 11 साल के आँकड़े बेहद चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं।
सक्रिय शिक्षा ऋणों में 12% की भारी गिरावट
2014 में सक्रिय शिक्षा ऋणों की संख्या 23.36 लाख थी, जो 2025 में घटकर सिर्फ 20.63 लाख रह गई है। यानी 2.73 लाख कम छात्रों को ही शिक्षा ऋण मिल पाया। दूसरी तरफ, बकाया राशि में भयानक उछाल आया है।
बकाया राशि में 163% का इजाफा
2014 से 2025 के बीच शिक्षा ऋण का कुल बकाया क्रेडिट 163% बढ़कर 1.37 लाख करोड़ रुपये पहुँच गया है। इसका मतलब साफ है, कम छात्र ज्यादा महँगी शिक्षा के लिए कर्ज ले रहे हैं।
समिति की प्रमुख सिफारिशें
समिति ने सरकार से कई बड़े सुधार करने को कहा है
सभी बैंकों में एकसमान ब्याज दर लागू हो
परिवार की आय के आधार पर पात्रता का नियम खत्म किया जाए
ग्रेजुएट बेरोजगारी को देखते हुए आय-आधारित किश्तों (Income Contingent Repayment) की व्यवस्था हो
कोलेटरल-फ्री ऋण की गारंटी सीमा 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख रुपये की जाए
क्रेडिट गारंटी फंड को दोगुना किया जाए
पीएम विद्या लक्ष्मी योजना को मिली सराहना
लेकिन...रिपोर्ट में प्रधानमंत्री विद्या लक्ष्मी योजना की शुरुआती सफलता की तारीफ की गई है। अगस्त 2025 तक इस योजना के तहत 30,000 से ज्यादा आवेदनों को मंजूरी मिली और 4,427 करोड़ रुपये वितरित हुए। लेकिन समिति का कहना है कि यह योजना अभी सिर्फ टॉप संस्थानों तक सीमित है।
क्षेत्रीय असमानता और NPA पर चिंता
समिति ने चेतावनी दी है कि योजना का दायरा बढ़ाकर सामान्य कॉलेजों तक पहुँचाना जरूरी है, वरना क्षेत्रीय असमानता बढ़ेगी। वर्तमान में शिक्षा ऋणों का NPA सिर्फ 1.9% है, जो अपेक्षाकृत कम है, लेकिन अगर सुधार नहीं हुए तो यह भी बढ़ सकता है।रिपोर्ट स्पष्ट संदेश देती है कि शिक्षा महँगी होती जा रही है और मौजूदा व्यवस्था आम छात्रों के हित में नहीं है। सरकार पर अब इन सिफारिशों को लागू करने का दबाव बढ़ गया है।