गठिया के लक्षणों को अनदेखा करना पड़ सकता है भारी, ऐसे करें शुरुआती लक्षणों की पहचान

गठिया के रोगी को पहले पेट में जलन होती है। पेट में गैस की अधिकता होती है। मुंह के स्वाद में खराबी आ जाती है। भूख में गड़बड़ी व बेचैनी के लक्षण देखे जाते हैं।
गठिया के लक्षणों को अनदेखा करना पड़ सकता है भारी, ऐसे करें शुरुआती लक्षणों की पहचान
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वात रोगों में गठिया अत्यंत कष्टप्रद रोग माना गया है। विदेशों में इसे रोगों का राजा कहा जाता है। यह प्रायः वंशानुगत रोग होता है। यह रोग अस्थि शोथ व अस्थि संधि से भी प्रारंभ हो सकता है। आगे धीरे-धीरे अन्य छोटी-बड़ी संधियां प्रभावित होने लगती हैं। उनमें विकृतियां आ जाती हैं। जो लोग गठिया के लक्षण साफ दिखाई देने के बाद भी डॉक्टर के पास नहीं जाते और अपना इलाज नहीं कराते, वे कष्ट की जिंदगी पाते हैं। जोड़ों और पैर के अंगूठे में सूजन तथा दर्द से बीमारी की प्राथमिक झलक मिलती है। यह गठिया के हमले की शुरुआत है। इस दौरान डॉक्टर को दिखाकर इलाज कराकर इसके हमले की गति को धीमा किया जा सकता है या इस रोग को पूरी तरह रोका जा सकता है।

कारण

गठिया की शुरुआत सुकुमार प्रकृति, मोटे, संपन्न, दिन में सोने व रात में जागने वाले व्यक्तियों, नमकीन चटपटे, गरम पदार्थों का सेवन करने वालों को होती है। शराब, सिरका, आसव, गन्ना, दही, अजीर्ण अवस्था में गरिष्ठ भोजन, करने वालों में यह समस्या अधिक पाई जाती है। गठिया भी मधुमेह की भांति पाचन, चयापचय, मेटाबालिज्म का रोग है। इससे रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है जो दालों से मिलने वाली प्यूरीन नामक प्रोटीन का एक घटक होता है जिसके चलते अस्थि संधियों में सोडियम बाइयूरेट का जमाव क्रिस्टल के रूप में होने लगता है। इसका दर्द सुई की भांति तेज चुभने वाला होता है। यह जमाव गुर्दे व त्वचा में भी होता है। इस गठिया रोग में गुर्दे, मूत्राशय में दर्द या पथरी व धमनी संबंधी समस्याएं होती हैं।

लक्षण:

गठिया के रोगी को पहले पेट में जलन होती है। पेट में गैस की अधिकता होती है। मुंह के स्वाद में खराबी आ जाती है। भूख में गड़बड़ी व बेचैनी के लक्षण देखे जाते हैं। आधी रात को पैर के अंगूठे में अचानक पीड़ा होती हैं, जोड़ लाल पड़ जाते हैं दबाने पर गड्डा महसूस होता है, बुखार चढ़ जाता है। अंगूठे के जोड़ों में एक या दोनों तरफ सूजन हो जाती है। कभी- कभी तेज दर्द होता है। रक्त परीक्षण में यूरिक एसिड अधिक पाया जाता है। अस्थियों के संधिगत सिरों पर यूरेटस के क्रिस्टल का जमाव होता है जो एक्सरे द्वारा परीक्षण करने पर दिखता है।

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जोड़ों के दर्द को गंभीरता से लें, अन्यथा उठाना पड़ सकता है नुकसान

श्वेत रक्त कणिकाओं तथा ई.एस.आर. में वृद्धि दिखाई देती है। हाथों की अस्थियों व उंगलियों के पोरों में पोलापन महसूस होता है। संधियों में विकृति आ जाती है। गठिया का रोगी पहले-पहल इसे मामूली बात कहकर टालता है। सुनी सुनाई चिकित्सा करता है। ठीक होने की प्रतीक्षा करता है पर रोग तब तक गंभीर हो जाता है। उसे शारीरिक व मानसिक परेशानी होने लगती है। अतएव प्रारंभिक लक्षण की स्थिति में जांच उपरांत गठिया की पुष्टि होने पर इलाज करा लेने से व्यक्ति पीड़ादायी भविष्य से पूर्व ही सुरक्षित हो जाता है।

बचाव 

गठिया की चपेट में आने वाले अधिकांश रोगी जीवन-शैली में बदलाव कर इस बीमारी से बच सकते हैं।

●लम्बे समय तक पालथी मारकर बैठने, पैर को एक के ऊपर एक क्रास बनाकर रखने से इसे बढ़ावा मिलता है। अतएव ज्यादा देर पालथी मारकर न बैठें।

●कुर्सी में बैठते या बिस्तर में सोते समय एक पैर के ऊपर दूसरा पैर ज्यादा देर न रखें।

●अपना वजन व मोटापा कम करें।

●जोड़ों पर ज्यादा जोर न दें।

●कैल्शियम वाली चीजों को बढ़ावा दें।

●धूप का सेवन कर विटामिन डी प्राप्त कर हड्डी व मांसपेशियों को मजबूत बनाएं।

●गठिया रोगी जूते व कपड़े तंग न पहनें। पैर मोड़कर ज्यादा न रखें। खड़े होते समय दोनों पैर बराबर रखें। शरीर का भार उस पर एक समान हो। कुर्सी आदि में बैठते समय दोनों पैर का तला शरीर में एक समान हो। अवसर मिलने पर शरीर को लंबा तानें। उपयुक्त व्यायाम व कसरत करें। ठंडे स्थानों में ज्यादा न रहें। ठंडी चीजें न खाएं। ज्यादा ठंडे पानी से न नहाएं।

गुनगुना या हल्का गर्म पानी उपयुक्त रहता है। डॉक्टर द्वारा जांच के उपरांत सुझाए गए दवा व व्यायाम का पालन करें।

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क्या खाएं, क्या नहीं

●तैलीय पदार्थों से बचें।

●शराब व सिरके का सेवन न करें।

●मांसाहार न करें।

●चाय, काफी, चटनी, खटाई, मिठाई, गोभी, टमाटर, पालक, चौलाई,दही, सेम, उड़द आदि वायुवर्धक चीजें न खाएं।

●भोजन गरिष्ठ न हो।

●पानी अधिक से अधिक मात्रा में लें।

●पुराना गेहूं, चावल, जौ, मसूर,मूंग, करेला, परवल, फल, मिश्री, मक्खन, पनीर, साबूदाना आदि का सेवन करें।

●भोजन सदैव सादा, गर्म, सुपाच्य व हल्का लें।

●निष्क्रिय व एक जैसी स्थिति में ज्यादा न रहें। निर्धारित दवा का नियमित सेवन करें।

उपयुक्त व्यायाम जरूर करें। सतत् डॉक्टर के सम्पर्क में रहें। सभी पैथियों में सटीक दवा है पर सबसे ज्यादा महत्व रोगी की व्यक्तिगत शारीरिक सक्रियता है।

किसी भी स्थिति में हताश व निराश न हों। हंसमुख रहें, इच्छाशक्ति को बनाए रखें। गठिया रोग के हो जाने पर अपनी जीवनशैली एवं खान-पान में उपयुक्त बदलाव जरूर लाएं किन्तु इलाज में देरी घातक हो सकती है क्योंकि रोग की अनदेखी व लापरवाही से रोग खतरनाक हो जाता है।

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