बच्चे तेजी से हो रहे हैं टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज का शिकार

विशेषज्ञों के अनुसार, बचपन में वजन बढ़ना, कम शारीरिक गतिविधि, घंटों मोबाइल और टीवी देखने की आदत, तथा हाई-कैलोरी व कार्बोहाइड्रेट युक्त फास्ट फूड का सेवन प्रमुख कारण हैं।
बच्चे तेजी से हो रहे हैं टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज का शिकार
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कोलकाता : मधुमेह अब केवल वयस्कों की बीमारी नहीं रह गई है। बच्चों में भी डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, और यह समाज के लिए एक गहरी चिंता का विषय बनता जा रहा है। मणिपाल अस्पताल, ढाकुरिया के एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. सोहम तरफदार ने बताया कि भारत में अब बच्चों में टाइप-1 और टाइप-2 दोनों प्रकार की डायबिटीज के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

डॉ. तरफदार के अनुसार, ‘टाइप-1 डायबिटीज के मामलों में हर साल 2 से 5 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है, जबकि टाइप-2 डायबिटीज के मामले करीब 4.8 % की दर से बढ़ रहे हैं।’ पहले बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज अधिक पाई जाती थी, लेकिन अब मोटापे और निष्क्रिय जीवनशैली के कारण टाइप-2 डायबिटीज भी तेजी से बढ़ रही है।

क्या है टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज

डॉ. तरफदार ने बताया कि टाइप-1 डायबिटीज एक ऑटोइम्यून रोग है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ही पैंक्रियास की बीटा सेल्स पर हमला कर देती है। ये कोशिकाएं इंसुलिन बनाने के लिए जिम्मेदार होती हैं। जब ये नष्ट हो जाती हैं, तो शरीर में इंसुलिन का निर्माण रुक जाता है और ब्लड शुगर तेजी से बढ़ता है। वहीं, टाइप-2 डायबिटीज में शरीर में इंसुलिन तो बनता है, लेकिन वह ठीक से काम नहीं करता इसे इंसुलिन रेजिस्टेंस कहा जाता है। यह स्थिति खासतौर पर मोटे बच्चों, निष्क्रिय जीवनशैली, और अत्यधिक जंक फूड खाने वालों में देखी जा रही है।

बढ़ते जोखिम कारक

विशेषज्ञों के अनुसार, बचपन में वजन बढ़ना, कम शारीरिक गतिविधि, घंटों मोबाइल और टीवी देखने की आदत, तथा हाई-कैलोरी व कार्बोहाइड्रेट युक्त फास्ट फूड का सेवन प्रमुख कारण हैं। इसके अलावा, जिन बच्चों के माता-पिता को डायबिटीज है, उनमें भी टाइप-2 डायबिटीज का खतरा अधिक रहता है। हालांकि टाइप-1 डायबिटीज में वंशानुगत कारण बहुत सीमित देखे गए हैं, लेकिन कुछ दुर्लभ मामलों में यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी भी हो सकती है।

लक्षण और पहचान

डॉ. तरफदार ने बताया कि बच्चों में यदि अचानक वजन कम होना (2-5 किलो तक कुछ महीनों में), बार-बार पेशाब आना, अत्यधिक प्यास लगना, बार-बार भूख लगना या रात में बिस्तर गीला करना जैसे लक्षण दिखें, तो तुरंत ब्लड शुगर जांच करानी चाहिए। कई बार टाइप-1 डायबिटीज के मरीज ‘डायबिटिक कीटोएसिडोसिस’ जैसी गंभीर स्थिति में पहुंच जाते हैं, जिसमें उलझन, सुस्ती, सांस लेने में कठिनाई और बेहोशी जैसे लक्षण दिखते हैं, जिनके लिए अस्पताल में भर्ती होना जरूरी होता है।

सावधानी ही बचाव

चिकित्सकों का सुझाव है कि बच्चों को नियमित रूप से शारीरिक गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करें, स्क्रीन टाइम सीमित करें, और पौष्टिक आहार दें। माता-पिता को भी बच्चों के वजन और खानपान पर लगातार निगरानी रखनी चाहिए। डॉ. तरफदार ने कहा, ‘बचपन में मोटापा और निष्क्रिय जीवनशैली बच्चों को भविष्य के गंभीर रोगों की ओर धकेल रही है। आज से ही सतर्क होना ही कल की सुरक्षा है।’

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