

कोलकाता : डायबिटीज, जिसे मधुमेह के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी बीमारी है जो शरीर में इंसुलिन हार्मोन के असंतुलन के कारण ब्लड शुगर के स्तर को प्रभावित करती है। यह बीमारी धीरे-धीरे विकसित होती है और अक्सर बिना किसी स्पष्ट लक्षण के लोगों को अपनी चपेट में ले लेती है, जिसकी वजह से इसे ‘साइलेंट किलर’ कहा जाता है। विश्व स्तर पर करोड़ों लोग इससे प्रभावित हैं।
भारत को विश्व का डायबिटीज कैपिटल कहा जाता है। हालिया वर्षों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं में डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। शहरी क्षेत्रों में 25 से 30 प्रतिशत महिलाएं और ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 15 प्रतिशत महिलाएं इसकी शिकार हैं। विश्व मधुमेह दिवस के अवसर पर विशेषज्ञों ने महिलाओं में इस बीमारी के बढ़ते खतरे पर चेतावनी जारी की है, जिसमें हार्मोनल बदलाव, मातृत्व और जीवनशैली जैसे कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
डायबिटिक महिलाओं में हृदय रोग का खतरा 6 गुना ज्यादा
एशियन इंस्टिट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी एंड रुमेटोलॉजी, न्यू टाउन की डायबिटीज विशेषज्ञ डॉ. सिलिमा एस. तारेनिया ने बताया, ‘डायबिटीज से ग्रस्त महिलाओं की औसत आयु पुरुषों की तुलना में 8.2 वर्ष कम होती है, जबकि पुरुषों में यह अंतर 7.5 वर्ष का है। हृदय रोग का खतरा डायबिटीज वाली महिलाओं में छह गुना ज्यादा होता है।’
गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज के मामले
उन्होंने बताया कि ‘विश्वभर में करीब 21.5 करोड़ महिलाएं मधुमेह की शिकार हैं और यह संख्या तेजी से बढ़ रही है। भारत में हालिया अध्ययन में सामने आया है कि गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज के मामले शहरी क्षेत्रों में 17.8 प्रतिशत, अर्ध-शहरी में 13.8 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 9.9 प्रतिशत तक हैं।’
ये भी पढ़ें :- क्या है पैथोलॉजिकल लाइंग डिसऑर्डर ?
मानसिक परेशानियां
डॉ. तारेनिया के अनुसार, डायबिटीज वाली महिलाएं कई बार अवसाद, चिंता और अपराधबोध जैसी मानसिक परेशानियों से भी गुजरती हैं।
क्या करना चाहिए
उन्होंने सलाह दी कि ‘डायबिटीज की रोकथाम के लिए महिलाओं को सही पोषण, नियमित व्यायाम, गर्भावस्था के दौरान वजन नियंत्रण और ब्लड शुगर की नियमित मॉनिटरिंग पर ध्यान देना चाहिए।’
80% लोगों में लक्षण नहीं होते
पीयरलेस अस्पताल के वरिष्ठ एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. कल्याण कुमार गांगोपाध्याय ने इस पर विस्तार से जानकारी देते हुए कहा, ‘डायबिटीज में 80 प्रतिशत लोगों में किसी प्रकार के लक्षण नहीं होते। जब ब्लड शुगर बहुत अधिक बढ़ जाता है, तभी बार-बार पेशाब आना, प्यास बढ़ना, वजन घटना और थकान जैसे लक्षण प्रकट होते हैं।
ये भी पढ़ें :- महिलाओं में मानसिक तनाव के कारण
महिलाओं में विशेष लक्षण
महिलाओं में इसके विशेष लक्षणों में वेजाइनल इन्फेक्शन और वेजाइनल डिस्चार्ज शामिल हैं, जिन्हें अक्सर महिलाएं नजरअंदाज कर देती हैं।’ उन्होंने बताया कि ‘पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) जैसी हार्मोनल समस्याओं, गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज (गेस्टेशनल डायबिटीज), मोटापा, तनाव, और शारीरिक गतिविधि की कमी से महिलाओं में डायबिटीज की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
गर्भावस्था में डायबिटीज मां औरबच्चे दोनों के लिए जोखिम
गर्भावस्था में डायबिटीज मां और बच्चे दोनों के लिए जोखिम भरी हो सकती है । बच्चे का वजन अधिक होना, प्री-एक्लेम्पसिया, या जन्म के बाद बच्चे में हाइपोग्लाइसीमिया जैसी जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।’
हार्मोनल बदलाव भी एक कारण
डॉ. गांगोपाध्याय ने कहा कि मेनोपॉज के बाद हार्मोनल बदलावों से महिलाओं में ब्लड शुगर में उतार-चढ़ाव और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है। ‘डायबिटीज से महिलाओं में हड्डियों की कमजोरी, दृष्टि दोष और हृदय रोग की संभावना और बढ़ जाती है। इसलिए जिन महिलाओं को मोटापा है, परिवार में डायबिटीज का इतिहास है, या गर्भावस्था के दौरान शुगर रही है, उन्हें हर साल ब्लड शुगर टेस्ट जरूर करवाना चाहिए।’
ये भी पढ़ें :- डायबिटीज-मोटापा है तो अमेरिकी वीजा नहीं मिलेगा ?