हावड़ा का यह मंदिर वास्तुकला का अनूठा नमूना है, समेटे हुए है भारत से यूरोप तक की पहचान

झिकिरा के प्राचीन टेराकोटा मंदिर 8 पुराने मंदिरों का अनोखा संगम है
हावड़ा का यह मंदिर वास्तुकला का अनूठा नमूना है, समेटे हुए है भारत से यूरोप तक की पहचान
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हावड़ा : हावड़ा जिले के आमता-II ब्लॉक में स्थित झिकिरा गांव अपनी प्राचीन टेराकोटा मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इतिहास प्रेमी डेविड मैककचियन के अनुसार, हावड़ा के मंदिर हुगली की शैली का विस्तार हैं। गांव की संकरी सड़कों से गुजरकर इन मंदिरों तक पहुंचा जा सकता है। यहां पर करीब 8 पुराने मंदिरों का हिस्सा देखने को मिलता है। यहां के मध्यपाड़ा में मल्लिक परिवार का दक्षिणमुखी श्यामसुंदर मंदिर सबसे पुराना है।

इसकी नींव से पता चलता है कि यह मंदिर करीब 350 साल पहले 1613 शकाब्द (1691 ई.) में बनवाया गया था। अटचाला शैली का यह मंदिर तीन प्रवेश द्वारों वाला है और ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। इसमें कृष्ण की काले पत्थर की मूर्ति, राधा की अष्टधातु की मूर्ति और दामोदर नामक शालीग्राम हैं। टेराकोटा पैनल में हंस, नाव, शिकार दृश्य, जुलूस और यूरोपीय जहाजों के चित्र हैं। हालांकि, मंदिर के ऊपरी कोने में पेड़ उग आये हैं, जिन्हें तुरंत हटाने की जरूरत है।

प्रमुख मंदिरों की जानकारी

जय चंडी मंदिर

निर्माण: 1672 शकाब्द (1750 ई.)

शैली: दक्षिणमुखी अटचाला

स्थिति: 1894 में मरम्मत, मूल सजावट हटी; अब कमल मेडेलियन, पुष्प डिजाइन बचे

संरचना: नया पेंट, दाहिने दो शिव मंदिर, भोग घर, सामने बड़ा नटमंदिर

मूर्ति: लकड़ी की जय चंडी गढ़ चंडी से मिलती-जुलती

गढ़ चंडी मंदिर (सारखेलपाड़ा)

निर्माण: 1717 शकाब्द (1795 ई.), स्थानीय दावा - हुसैन शाह काल

शैली: दक्षिणमुखी नवरत्न

संरचना: बड़ा नटमंदिर, सीढ़ियां, बायें कोने में बिलेश्वर शिव देउल व श्रीधर जीऊ अटचाला

मूर्ति: लकड़ी की गढ़ चंडी (एक हाथ ऊपर, एक नीचे)

टेराकोटा: कमजोर गोलाकार पंक्ति

दामोदर जीऊ मंदिर (मंडल परिवार)

निर्माण: 1691 शकाब्द (1769 ई. संदर्भ), मिस्त्री: श्री सुकदेव

शैली: दक्षिणमुखी अटचाला

टेराकोटा: रामायण युद्ध, कृष्णलीला, सामाजिक दृश्य (क्षेत्र का सबसे संरक्षित)

विशेष: दो रंगों में पेंट, सामने अष्टकोणीय रासमंच

दामोदर जीऊ नवरत्न मंदिर (पश्चिमपाड़ा, रोयबाती)

निर्माण: 1207 बंगाब्द (1800 ई.), मरम्मत: 1964, 1998

मूर्ति: लकड़ी के सिंहासन पर दामोदर शालीग्राम

विशेष: नया शिलालेख, पास में पंचरत्न दोलमंच व द्वितल दोलमंच

दामोदर मंदिर (पश्चिमपाड़ा)

निर्माण: 1698 शकाब्द (1776 ई.)

स्थिति: जीर्ण-शीर्ण, रामायण, कृष्णलीला, सामाजिक दृश्य

परिसर: तुलसी मंच, दोलमंच संभवतः इसी मंदिर का

सीतानाथ मंदिर (कामरपाड़ा)

निर्माण: 1705 शकाब्द (1783 ई.)

शैली: बड़ा दक्षिणमुखी अटचाला

स्थिति: मरम्मत कार्य चल रहा, रामायण-कृष्णलीला दृश्य

श्रीधर जीऊ नवरत्न मंदिर (हाजरा परिवार)

काल: 19वीं सदी (निर्माण/मरम्मत)

विशेष: उकेरी हुई ज्यामितीय-पुष्प प्लास्टर सजावट, नया पेंट

इन मंदिरों में टेराकोटा कला बंगाल के सामाजिक-धार्मिक जीवन की झलक देती है।

कई पैनल क्षतिग्रस्त, पेंट धुंधले हो गये हैं। इन्हें संरक्षण की तत्काल जरूरत है।

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