

सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : नेताजी सुभाष चंद्र बोस के एक परिजन ने भारत के स्वतंत्रता-पूर्व इतिहास की सबसे रोमांचक घटनाओं में से एक — “ग्रेट एस्केप” — पर नई रोशनी डाली है। उन्होंने इस साहसिक प्रसंग के ऐसे विवरण साझा किए हैं, जो इसे एक अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के लिए रोमांचक राजनीतिक थ्रिलर फिल्म में रूपांतरित करने योग्य बनाते हैं।
1963 की हॉलीवुड की प्रसिद्ध युद्ध पर आधारित फिल्म “द ग्रेट एस्केप” — जिसमें स्टीव मैक्वीन, जेम्स गार्नर और रिचर्ड एटनबरो ने अभिनय किया था — द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मन युद्ध कैद शिविर स्टालग लुफ्ट III से ब्रिटिश कैदियों के सामूहिक पलायन की एक काल्पनिक कहानी प्रस्तुत करती है। लेकिन नेताजी के भतीजे अभिजीत रे द्वारा सुनाया गया यह प्रसंग एक सच्ची ऐतिहासिक घटना है — नेताजी का साहसिक पलायन, जो कोलकाता के एल्गिन रोड स्थित उनके घर से हुआ था, जिस पर उस समय ब्रिटिश अधिकारियों की कड़ी निगरानी थी।
यह घटना भी द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में हुई थी। नेताजी ने मुस्लिम बीमा एजेंट “मोहम्मद जियाउद्दीन” के वेश में 16-17 जनवरी, 1941 की रात को अपने घर से चुपचाप निकलने की योजना बनाई। निगरानी को भ्रमित करने के लिए उस रात उनके कमरे की बत्तियाँ जलती रखी गईं, ताकि यह लगे कि वे अभी भी भीतर हैं।
उनके भतीजे शिशिर बोस ने उन्हें जर्मन कार “वांडरर W24” में बैठाकर पहले बरारी तक और फिर गोमोह रेलवे स्टेशन तक पहुँचाया। वहाँ से नेताजी ने रेल यात्रा कर काबुल, फिर मॉस्को, और अंततः बर्लिन तक का सफर तय किया।
जब कार एल्गिन रोड से निकली, नेताजी ने दरवाजा बंद नहीं किया, बल्कि हैंडल पकड़े रखा। केवल शिशिर ने अपनी ओर का दरवाजा बंद किया, ताकि यह लगे कि कार में सिर्फ एक व्यक्ति सवार है। कुछ दूरी तय करने के बाद ही नेताजी ने धीरे से अपना दरवाजा बंद किया।
यह पल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अद्वितीय साहस, रणनीति और देशभक्ति का प्रतीक बन गया — नेताजी के उस अडिग संकल्प का, जिसने उन्हें कोलकाता की एक निगरानी में घिरी कोठी से जर्मनी तक पहुँचा दिया।