

कोलकाता : साल्टलेक सांस्कृतिक संसद के तत्वाधान में विधान गार्डन नंबर वन, उल्टाडांगा में दोपहर चल रही श्री भक्तमाल कथा में वृंदावन से पधारे परम श्रद्धेय श्री गौर दास जी महाराज ने श्री बांके बिहारी जी एवं उनके प्राकट्यकर्ता स्वामी हरिदास जी का पावन चरित्र सुनाया। महाराज जी ने कहा कि स्वामी हरिदास जी का प्राकट्य 1569 में राधाष्टमी के दिन गृहस्थ संत आशु धीर जी के घर हुआ था। वे स्वयं ललिता सखी के अवतार थे और उन्हें गुरु दीक्षा भी अपने पिता से ही मिली थी। उन्होंने बताया कि स्वामी हरिदास जी प्रतिदिन प्रातःकाल श्री बिहारी जी के दर्शन करने जाते थे, और वहाँ से प्रतिदिन 12 स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त होती थीं।
उन मुद्राओं से वे आगरा से कच्चा-पक्का सामान मंगवाकर भोग बनाते और वृंदावन के संतों, पक्षियों और बंदरों को खिलाते थे। स्वयं वे केवल बंदरों द्वारा छोड़े हुए चने को यमुना जल में धोकर एक मुट्ठी ग्रहण करते थे। एक दिन श्री बिहारी जी ने दर्शन देकर कहा कि तुम प्रसाद नहीं लेते, तो मैं भी भोग स्वीकार नहीं करूंगा। तब महाराज की विनती पर स्वामी हरिदास जी ने आटे की एक लोई बनाकर प्रतिदिन उन्हें भोग लगाना आरंभ किया।
महाराज जी ने बताया कि एक दिन शिष्यों के आग्रह पर प्रार्थना करने पर श्री बिहारी जी प्रत्यक्ष प्रकट हुए। उनके प्रथम शिष्य विट्ठल विपुल जी ने सफेद चादर में लपेटकर श्री बिहारी जी को गोदी में लिया। इसके बाद वृंदावन के संतजन एकत्र हुए और श्री बांके बिहारी जी की भव्य शोभायात्रा निकाली गई।
महाराज जी द्वारा गाए भजनों पर ललित बेरीवाला, संजय अग्रवाल, प्रदीप तोदी, सीताराम अग्रवाल, भंवर लाल जाजोड़िया, प्रदीप दारूका, राम किशन गोयल, राधे श्याम गोयंका, अमित पोद्दार, विक्रम खजांची, राधे श्याम गुप्ता, जगदीश अग्रवाल ,सुभाष मुरारका, ललित प्रलाहदका ,संजय पोद्दार, कमल अग्रवाल, दीपक धनानीआ ,लखन धोना, दिनेश अग्रवाल, रविन्द्र दारूका, अनुराग अग्रवाल आदि भाव में मग्न होकर नृत्य कर रहे थे। कथा समिति ने नगर के सभी धर्म प्रेमियों को कथा में सपरिवार आमंत्रित किया है।