

नयी दिल्ली- भारत में कर्ज लेने वाली महिलाओं की संख्या पिछले 5 वर्षों में 22 प्रतिशत की सालाना दर से बढ़ी है, जिनमें से अधिकांश कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। 3 मार्च, सोमवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं के ऋण का बड़ा हिस्सा उपभोग की मांग को पूरा करने के लिए था और तुलनात्मक रूप से व्यवसायों के लिए कम कर्ज लिया गया।
नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने ‘भारत में वित्तीय वृद्धि की कहानी में महिलाओं की भूमिका’ शीर्षक वाली यह रिपोर्ट जारी की। यह रिपोर्ट ट्रांसयूनियन सिबिल, नीति आयोग के महिला उद्यमिता मंच और माइक्रोसेव कंसल्टिंग ने प्रकाशित की है।
क्रेडिट स्कोर को लेकर जागरुक हैं महिलाएं
नीति आयोग ने बयान में कहा कि भारत में अधिक महिलाएं ऋण लेना चाह रही हैं और सक्रिय रूप से अपने क्रेडिट स्कोर की निगरानी भी कर रही हैं। दिसंबर, 2024 तक करीब 2.7 करोड़ महिलाएं अपने कर्ज पर नजर रखे हुए थीं जो उनकी बढ़ती वित्तीय जागरूकता को दर्शाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला उधारकर्ताओं में से 60% कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों से थीं।
एमएससी के प्रबंध निदेशक मनोज कुमार शर्मा ने कहा, यह महानगरों से परे एक गहरी वित्तीय छाप को रेखांकित करता है। इसके साथ ही महिलाओं की युवा पीढ़ी अपने कर्ज की निगरानी में भी अग्रणी है।