

प्रसेनजीत, सन्मार्ग संवाददाता
दार्जिलिंग : मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को दार्जिलिंग में आयोजित एक उच्चस्तरीय प्रशासनिक बैठक से केंद्र सरकार और डीवीसी पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा, अगर जल छोड़ने की नीति नहीं बदल सकते तो डैम तोड़ दीजिए, नदियों को उनके प्राकृतिक रास्ते पर बहने दीजिए। जब भी प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया गया, उसने उसका बदला लिया है — चाहे उत्तराखंड हो या उत्तरबंगाल, यह बार-बार साबित हुआ है। मुख्यमंत्री ने चेतावनी दी कि डीवीसी की गलत नीति और केंद्र की उदासीनता के कारण हर साल बंगाल बाढ़ की मार झेलता है। उन्होंने कहा, मइथन, पंचेत, फरक्का और हल्दिया में बीस वर्षों से ड्रेजिंग नहीं हुई। बरसात में जल छोड़ा जाता है और गर्मियों में पानी नहीं मिलता — यह कैसी नीति है? ममता ने वैज्ञानिक मेघनाद साहा की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे डैमों की आवश्यकता ही नहीं थी।
ममता ने कहा कि बिहार, यूपी और अन्य उत्तरी राज्यों से आने वाले जल के कारण बंगाल और बिहार दोनों प्रभावित होते हैं। उन्होंने कहा, आपदा में 70 हज़ार लोग प्रभावित हुए लेकिन केंद्र ने एक पैसा भी नहीं दिया। केंद्र सरकार अपने जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। दार्जिलिंग के ऐतिहासिक लालकुठी में हुई इस बैठक में मुख्यमंत्री ने उत्तर बंगाल में हालिया प्राकृतिक आपदा की स्थिति की समीक्षा की। उन्होंने बताया कि दार्जिलिंग और कालिम्पोंग जिले सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। अब तक कुल 32 लोगों की मृत्यु हुई है — जिनमें 21 दार्जिलिंग, 9 जलपाईगुड़ी और 2 कोचबिहार के हैं। हर मृतक परिवार को 5-5 लाख रुपये की सहायता और एक सदस्य को होमगार्ड की नौकरी दी गई है। बारिश, भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ ने दार्जिलिंग, कालिम्पोंग, अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी और कोचबिहार के कई इलाकों को डुबो दिया है। आपदा के बाद से ही प्रशासन और आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारी तथा कर्मचारी राहत और बचाव कार्य में जुट गए। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि उनकी तत्परता की वजह से अनेक पीड़ितों की जान बचाई जा सकी। इस दिन ममता बनर्जी ने प्रशासनिक अधिकारियों, कर्मचारियों और आपदा प्रबंधन विभाग के कर्मियों को सलाम किया।
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सीएम ने बताया कि करीब 20 हज़ार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है, जबकि 37 राहत शिविरों में 6,000 से अधिक लोग ठहरे हैं। 55 सामुदायिक रसोईयों से भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। लेकिन केंद्र से अब तक कोई सहायता नहीं मिली, लेकिन हमारी सरकार हर पीड़ित के साथ खड़ी है। ममता बनर्जी ने पहाड़ों में प्राकृतिक समाधान का सुझाव देते हुए कहा, अब कंक्रीट से काम नहीं चलेगा। प्रकृति से ही प्रकृति की रक्षा करनी होगी। उन्होंने सुंदरबन की तरह उत्तरबंगाल के पहाड़ी इलाकों में मैनग्रूव और वेटिवर पौधे लगाने का प्रस्ताव रखा।
परिणाम उत्तराखंड से भी भयावह होंगे
मुख्यमंत्री ने भूटान और पड़ोसी राज्यों से आने वाले अतिरिक्त जल को भी बंगाल में बाढ़ का कारण बताया। उन्होंने सवाल उठाया कि, भूटान का पानी हमें डुबो देता है, लेकिन कोई मुआवजा नहीं देता। आखिर हर बार हम ही क्यों भुगतें? उन्होंने कहा, राज्य सरकार हालात को सामान्य करने की पूरी कोशिश कर रही है। काम युद्धस्तर पर चल रहा है। दिल्ली से किसी तरह की मदद नहीं मिली है, राज्य सरकार ही आम लोगों के साथ खड़ी है। जीवन को फिर से सामान्य करने की कोशिश जारी है। जानकारी के अनुसार, सात दिनों के भीतर दूधिया में एक अस्थायी पुल तैयार किया जाएगा। सड़कों और पुलों का निर्माण भी राज्य सरकार ही करेगी। साथ ही, प्रभावित किसानों को फसल बीमा की राशि दी जाएगी। ममता का स्पष्ट संदेश था — प्रकृति को साथ लेकर चलिए, नहीं तो परिणाम उत्तराखंड से भी भयावह होंगे।