'हाथापाई करना क्रूरता नहीं', कोलकाता हाईकोर्ट ने खारिज किया शारीरिक उत्पीड़न का मामला

पत्नी की याचिका खारिज, हाईकोर्ट ने दी बड़ी टिप्पणी
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कोलकाता हाईकोर्ट
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कोलकाता: कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस डॉ. अजय कुमार मुखर्जी ने पीटिशनरों के खिलाफ दर्ज शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के मामले को खारिज कर दिया। इसके साथ ही पति व ससुराल वालों को 498ए के तहत दायर मुकदमे से बरी कर दिया। पत्नी ने पीटिशनरों के खिलाफ बर्दवान महिला पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी।

इस बाबत दायर रिट के मुताबिक पत्नी ने बर्दवान महिला थाने में 2022 में एफआईआर दर्ज कराई थी। इसके बाद बर्दवान के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में आईपीसी की धारा 498ए और 406 के तहत मुकदमा कायम किया गया था।

‘हंगामा करना क्रूरता नहीं’

पीटिशनरों ने इस मामले को खारिज करने की अपील करते हुए हाईकोर्ट में रिट दायर की थी। जस्टिस मुखर्जी ने अपने फैसले में कहा है कि चार्जशीट संदिग्ध रूप से किसी प्रकार के उत्पीड़न या किसी मांग के बाबत खामोश है। बस सरसरी तौर पर उत्पीड़न की बात कही गई है।

उन्होंने कहा है कि हाथापाई करना, धक्कामुक्की करना या हंगामा खड़ा करने भर से क्रूरता का मामला नहीं बनता है। क्रूरता का मामला तब बनता है जब गंभीर चोट लगी हो, जीवन खतरे में पड़ गया हो या खुदकुशी करने के इरादे से उसे प्रेरित किया गया हो। ससुराल वालों के खिलाफ भी बस आरोप भर लगाए गए हैं। उनमें स्थान, समय और तारीख का कोई ब्यौरा नहीं है। इसके अलावा स्त्रीधन की वापसी का भी कोई मामला नहीं है। इस सिलसिले में दर्ज करायी गई पहली एफआईआर में इसका कोई जिक्र नहीं है।

मामले को कर दिया गया खारिज

जस्टिस मुखर्जी ने अपने फैसले में कहा है कि यह एक सर्वमान्य न्यायिक सिद्धांत है कि जहां सजा सुनाई जाने की कोई गुंजाइश नहीं हो, वहां आपराधिक मामला चलाए जाते रहने से कोई उद्येश्य पूरा नहीं होता है। जस्टिस मुखर्जी ने कहा है कि अगर एफआईआर में लगाए गए आरोप और दस्तावेजों को पूरी तरह मान लें तो भी प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध का मामला नहीं बनता है। लिहाजा इस एफआईआर के आधार पर बर्दवान महिला थाने में दर्ज एफआईआर के आधार पर बर्दवान के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में चल रहे मुकदमे को खारिज किया जाता है।

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