नई दिल्ली: हैलोवीन डे दुनिया भर में 31 अक्टूबर को मनाया जाता है। हैलोवीन खासकर ईसाईयों का त्योहार है। हैलोवीन को कई अलग-अलग नाम जैसे आल हेलोस ईव, आल हेलोस इवनिंग, आल हैलोव और आल सैंट्स ईव से भी पहचाना जाना जाता है। हैलोवीन का नाम दिमाग में आते ही तरह तरह के डरावने चित्र हमारे मन में आते है।
बता दें कि इस दिन लोग दानव, शैतान, भूत, पिशाच, मोंस्टर, ममी, कंकाल, वैम्पायर, वेयरवोल्फ और चुडैलों से प्रभावित ड्रेस पहनते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं लोग ऐसा क्यों करते हैं? क्या है इस दिन को मनाने के पीछे का रहस्य ? आइए जानते हैं आखिर क्यों मनाया जाता है यह ‘डरावना त्योहार’ इसे मनाने के पीछे की कहानी।
क्या है इसके पीछे का रहस्य?
बता दें कि इस हैलोवीन त्योहार को मनाने के पीछे की अलग-अलग कहानियां इतिहास में प्रचलित है। दरअसल, पश्चिमी देशों में हैलोवीन त्योहार अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि हैलोवीन त्योहार को मनाने की शुरुआत लगभग 2000 वर्ष पहले हुई थी। उस समय हैलोवीन को उत्तरी यूरोप में ‘ऑल सेंट्स डे’ के रूप में मनाया जाता था।
लोगों की मान्यता है कि इस दिन मरे हुए लोगों की आत्माएं धरती पर आकर सामान्य लोगों को परेशान किया करती थीं, जिन्हें भगाने और डराने के लिए वहां के लोग डरावने कपड़े पहनकर जगह जगह आग जलाकर बुरी शक्तियों को दूर करने की कोशिश करते थे। इस त्योहार को मनाने के पीछे एक अन्य कहानी भी प्रसिद्ध है- कहा जाता है कि कुछ किसानों का मानना था कि बुरी आत्माएं धरती पर आकर उनकी फसल को नुकसान पहुंचा सकती हैं, इसलिए उन्हें डराने और फसल से दूर रखने के लिए वो लोग खुद डरावने कपड़े पहन लेते थे। हालांकि आज के समय में इस त्योहार को लोग सिर्फ मौज-मस्ती के लिए मनाते हैं।