कच्चे तेल की मांग उम्मतम स्तर तक पहुंचेगी

माना जा रहा है कि भारत वैश्विक तेल मांग वृद्धि का केंद्र बनेगा, जहां ऊर्जा की मांग चीन और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को मिलाकर भी पीछे छोड़ देगी।
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नयी दिल्ली : नवीकरणीय ऊर्जा की ओर तेज बदलाव के बीच कच्चे तेल की मांग जल्द ही अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचने की पुरानी भविष्यवाणियों के बीच तेल और गैस ने चुपचाप लेकिन स्पष्ट वापसी की है। इसमें भारत वैश्विक खपत का एक मुख्य चालक बनकर उभरा है। बीपी, मैकिंजी और अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) सहित प्रमुख ऊर्जा एजेंसियों की रिपोर्ट में तेल की चरम को 2030 के दशक तक आगे बढ़ा दिया गया है और 2050 की मांग के अनुमानों को ऊपर की ओर संशोधित किया है।

सभी का कहना है कि भारत वैश्विक तेल मांग वृद्धि का केंद्र बनेगा, जहां ऊर्जा की मांग चीन और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को मिलाकर भी पीछे छोड़ देगी। नीतिगत देरी, बुनियादी ढांचे की बाधाएं और भू-राजनीतिक तनाव के कारण 2025 में तेल की मांग बढ़ी। यूरोपीय देश, जो लंबे समय से स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण के समर्थक रहे हैं, रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच आपूर्ति की कमी और ऊंची कीमतों के चलते जीवाश्म ईंधनों पर अधिक निर्भर होते चले गए। अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की जीवाश्म ईंधन समर्थक नीतियों ने इस रुझान को और मजबूत किया। इस तरह तेल फिर से केंद्र में आ गया।

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2025 में भारत के तेल और गैस क्षेत्र की चर्चा आयात रुझानों में बदलाव

वर्ष 2025 में भारत के तेल और गैस क्षेत्र की चर्चा आयात रुझानों में बदलाव, नीतिगत सुधारों, बढ़ती मांग और ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने के प्रयासों से रही। इससे वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में देश की बदलती भूमिका का पता चलता है। भारत ने 2025 में भी कच्चे तेल के आयात पर भारी निर्भरता बनाए रखी, जहां अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद रूसी तेल एक प्रमुख स्रोत बना रहा। अमेरिका ने नयी दिल्ली से रूसी खरीद घटाने की मांग की और भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत तक शुल्क भी लगाया।

इसके बावजूद साल के अधिकांश समय में रूसी कच्चा तेल भारत के कुल आयात का एक-तिहाई से अधिक बना रहा। नवंबर के अंत में प्रमुख रूसी निर्यातकों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लागू होने के बाद ही आयात में कमी आई। घरेलू नीति में बदलावों के तहत पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस नियम, 2025 को अधिसूचित किया गया, जिससे निवेश आकर्षित करने और खोज तथा उत्पादन के लिए लाइसेंसिंग को सरल बनाने वाला एक आधुनिक नियामक ढांचा तैयार हुआ। भारत की शोधन क्षमता में लगातार विस्तार हुआ, जिससे वह एक वैश्विक रिफाइनिंग केंद्र के रूप में और मजबूत हुआ। हालांकि बुनियादी ढांचे में प्रगति के बावजूद, पुराने क्षेत्रों के कारण कच्चे तेल और गैस का घरेलू उत्पादन दबाव में रहा।

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