...तो बचायी जा सकती है किडनी रोगों से बच्चों की जान

दुर्लभ किडनी राेगों की शुरुआती पहचान जरूरी
...तो बचायी जा सकती है किडनी रोगों से बच्चों की जान
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मधु, सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ (ICH), कोलकाता में ‘अवेयरनेस एण्ड एक्सेस फॉर पेशेंट्स विथ रेयर किडनी डिसीजेज’ विषय पर एक पैनल चर्चा का आयोजन किया गया। इसमें देशभर के प्रमुख नेफ्रोलॉजिस्ट, जेनेटिक एक्सपर्ट्स, पॉलिसी मेकर्स, फर्टिलिटी एक्सपर्ट और उद्योग जगत के प्रतिनिधि शामिल हुए। चर्चा का मुख्य फोकस था, दुर्लभ किडनी रोगों की शुरुआती पहचान, प्रबंधन और मरीजों के लिए आजीवन देखभाल सुनिश्चित करना। कार्यक्रम का संचालन डॉ. दिपांजना दत्ता, जेनेटिक काउंसलर और ORDI की राज्य समन्वयक, ने किया।

प्राथमिक स्तर पर जेनेटिक जांच की हो सुविधा

डॉ. राजीव सिन्हा, वरिष्ठ चाइल्ड नेफ्रोलॉजिस्ट और ICH के विभागाध्यक्ष ने कहा, ‘सबसे बड़ी चुनौती है देर। पहचान में देर, जांच में देर और रेफरल में देर। अगर प्राथमिक स्तर पर जेनेटिक जांच की सुविधा हो, तो बच्चों की जान और किडनी दोनों बचाई जा सकती हैं।’ उन्होंने कहा कि नेफ्रोनोफ्थीसिस, सिस्टिनोसिस और FSGS जैसे रोगों की शुरुआती पहचान से परिवारों को भविष्य की योजना बनाने में मदद मिलती है। डॉ. प्रतीक दास, नेफ्रोलॉजिस्ट, ने कहा कि जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उन्हें सतत देखभाल की जरूरत होती है। उन्होंने कहा, ‘केवल डायलिसिस या ट्रांसप्लांट नहीं, बल्कि प्रजनन परामर्श और मानसिक सहयोग भी ज़रूरी है।’

स्थायी जीनोमिक परीक्षण व्यवस्था

डॉ. कौशिक मंडल, जेनेटिक विशेषज्ञ (SGPGI), ने कहा कि जीन जांच की लागत घटने से भारत को स्थायी जीनोमिक परीक्षण व्यवस्था विकसित करनी चाहिए, ताकि CSR और बीमा के तहत यह आम मरीजों तक पहुंचे। डॉ. राजीव अग्रवाल, फर्टिलिटी विशेषज्ञ, ने बताया कि ‘प्री-कंसेप्शन काउंसलिंग’ और ‘प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग’ जैसी तकनीकें आनुवंशिक बीमारियों की पुनरावृत्ति रोकने में मदद कर सकती हैं।

जेनेटिक जांच ने बदली इलाज की दिशा

डॉ. सुचंद्रा मुखोपाध्याय, IPGMER की नोडल ऑफिसर, ने कहा कि केंद्र, राज्य सरकार के साथ मिलकर NRDP गाइडलाइन के तहत दुर्लभ किडनी रोगियों के लिए फंडिंग और इलाज की सुविधा बढ़ा रहा है। मरीज के अभिभावक अभिषेक चक्रवर्ती ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, ‘जेनेटिक जांच ने हमारे बच्चे के इलाज की दिशा बदल दी। काश, यह पहले की पीढ़ी को भी मिली होती।’ अंत में, ICH के डॉ. प्रियंकर पाल ने कहा, ‘बचपन से ही हस्तक्षेप शुरू हो तो वयस्क जीवन में बेहतर परिणाम मिलते हैं। यही ICH का लक्ष्य है।’

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