

नयी दिल्ली : अमेरिका और एशिया-प्रशांत क्षेत्र के कई देशों के बीच हाल में द्विपक्षीय व्यापार समझौते होने से निर्यातकों के लिए अनिश्चितता कम होगी और आने वाले वर्षों में इन देशों की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि में मामूली बढ़ोतरी हो सकती है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने यह बात कही। भारत के संदर्भ में फिच ने कहा कि अमेरिका के साथ भले ही व्यापार समझौता अभी नहीं हुआ है, लेकिन भारत पर लगाया गया 50 प्रतिशत शुल्क अधिकांश एशियाई निर्यातकों की तुलना में काफी अधिक है। फिर भी, दोनों देशों के बीच निकट भविष्य में समझौता होने की संभावना बनी हुई है।
क्या है मामला : 20-30 अक्टूबर के बीच अमेरिका ने चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, मलेशिया, थाइलैंड, ऑस्ट्रेलिया और कंबोडिया के साथ समझौतों की घोषणा की है। इनमें सबसे अधिक आर्थिक प्रभाव चीन पर लगाई गई 20 प्रतिशत फेंटानिल-संबंधित अमेरिकी शुल्क को आधा करने से आएगा। इससे चीन पर प्रभावी शुल्क दर करीब 10 प्रतिशत अंक तक घट सकती है। रेटिंग एजेंसी ने कहा कि अमेरिका और चीन ने एक वर्ष के लिए अपने हालिया व्यापार प्रतिबंधों को रोकने पर सहमति जताई है, जिनमें चीन द्वारा दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के निर्यात पर लगाई गई पाबंदियां और अमेरिका द्वारा अपनी प्रतिबंधित इकाइयों से जुड़ी कंपनियों पर निर्यात लाइसेंसिंग शर्तों का विस्तार शामिल है।
क्या है उम्मीद : इन घटनाक्रमों का 2026-27 में चीन और अमेरिका की आर्थिक वृद्धि पर हल्का सकारात्मक असर पड़ेगा। अन्य एशियाई देशों, खासकर दक्षिण कोरिया और वियतनाम को भी अप्रत्यक्ष रूप से लाभ होगा। हालांकि, एजेंसी ने यह भी कहा कि अमेरिका के चीन पर लगाए गए शुल्क अन्य देशों की तुलना में अब भी अधिक हैं। फिच ने कहा, शुल्क दरों में स्पष्टता से निर्यातकों का भरोसा बढ़ेगा और वे अपनी आपूर्ति शृंखलाओं के दीर्घकालिक पुनर्गठन की योजना बेहतर तरीके से बना सकेंगे। इससे मलेशिया, थाइलैंड और वियतनाम जैसे देशों में निवेश वृद्धि को सहारा मिल सकता है। फिच ने उल्लेख किया कि ये व्यापार समझौते अमेरिका की उस नीति को दर्शाते हैं जिसके तहत वह चीन के बाहर दुर्लभ धातुओं के खनन और उत्पादन को बढ़ावा देना चाहता है। दक्षिण-पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया में इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिल सकता है लेकिन इसका व्यापक आर्थिक प्रभाव फिलहाल सीमित रहेगा।