

नयी दिल्ली : ऊर्जा बाजार से जुड़े विश्लेषकों का मानना है कि भारत में रूसी तेल का आयात निकट भविष्य में तेजी से घटेगा, हालांकि यह पूरी तरह बंद नहीं होगा। रूसी कच्चे तेल के प्रमुख निर्यातकों पर अमेरिका के नए प्रतिबंध पूरी तरह लागू होने से यह स्थिति बनी है। रॉसनेफ्ट और लुकोइल तथा उनकी बहुलांश स्वामित्व वाली सहायक कंपनियों पर अमेरिकी प्रतिबंध 21 नवंबर से लागू हो गए। इससे अब इन कंपनियों का कच्चा तेल खरीदना या बेचना लगभग नामुमकिन हो गया है।
आयात की स्थिति : भारत ने इस साल औसतन 17 लाख बैरल प्रतिदिन रूसी तेल का आयात किया और प्रतिबंधों से पहले यह मजबूत बना रहा। नवंबर में आयात 18–19 लाख बैरल प्रतिदिन रहने का अनुमान है, क्योंकि रिफाइनरी सस्ते तेल की खरीद को अधिकतम कर रहे हैं। आगे चलकर दिसंबर और जनवरी में आपूर्ति में स्पष्ट गिरावट आने की उम्मीद है। विश्लेषकों के अनुसार यह घटकर लगभग चार लाख बैरल प्रतिदिन तक रह सकता है। परंपरागत रूप से पश्चिम एशियाई तेल पर निर्भर भारत ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद रूस से अपने तेल आयात में काफी वृद्धि की।
क्या रहा कारण : पश्चिमी प्रतिबंध और यूरोपीय मांग में कमी के कारण रूस से तेल भारी छूट पर उपलब्ध हुआ। परिणामस्वरूप, भारत का रूसी कच्चा तेल आयात कुल आयात का एक प्रतिशत से बढ़कर लगभग 40 प्रतिशत तक पहुंच गया। नवंबर में भी रूस भारत का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना रहा, जो कुल आयात का लगभग एक तिहाई है।
क्या कहते हैं विश्लेषक : केप्लर के रिफाइनिंग और मॉडलिंग के मुख्य अनुसंधान विश्लेषक सुमित रितोलिया ने कहा, हम निकट भविष्य में, विशेषकर दिसंबर और जनवरी में भारत के लिए रूसी कच्चे तेल के प्रवाह में स्पष्ट गिरावट की उम्मीद करते हैं। अक्टूबर 21 से आपूर्ति धीमी हो गई है, हालांकि रूस की मध्यस्थों और वैकल्पिक वित्त प्रबंधन की क्षमता को देखते हुए अभी अंतिम निष्कर्ष निकालना जल्दी होगा।
क्या है स्थिति : प्रतिबंधों के लागू होने के कारण रिलायंस इंडस्ट्रीज, एचपीसीएल–मित्तल एनर्जी और मैंगलोर रिफाइनरी जैसी कंपनियों ने फिलहाल रूसी तेल का आयात रोक दिया है। इस मामले में एकमात्र अपवाद नयारा एनर्जी है, जो रॉसनेफ्ट समर्थित है और यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद अन्य स्रोतों से आपूर्ति कटने के कारण रूसी तेल पर भारी निर्भर है। रितोलिया ने कहा, ''नयारा के वादीनेर संयंत्र को छोड़कर कोई भी भारतीय रिफाइनर ओएफएसी-नामित संस्थाओं से जुड़े जोखिम नहीं लेना चाहता। खरीदारों को अपने अनुबंध, आपूर्ति मार्ग, स्वामित्व और भुगतान चैनलों को पुनः व्यवस्थित करने में समय लगेगा।''