भारत को चीन पर निर्भरता कम करना चाहिए

100 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा चिंताजनक
Jaishankar
चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर।
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नयी दिल्ली : चीन का भारत को दुर्लभ खनिजों और उर्वरकों के निर्यात पर पाबंदियों में ढील देने का फैसला एक सकारात्मक संकेत है। हालांकि, भारत को चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए काम करना चाहिए जिसके साथ उसका 100 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा चिंताजनक है। आर्थिक शोध संस्थान जीटीआरआई ने यह बात कही। जीटीआरआई के अनुसार, भारत के लिए एकमात्र वास्तविक सुरक्षा उपाय, निर्भरता कम करके, गहन विनिर्माण में निवेश करके और एक सच्चा उत्पाद राष्ट्र बनकर घरेलू स्तर पर मजबूत बनाना है।

क्या है कारण : आर्थिक शोध संस्थान जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘ एक मजबूत एवं अधिक आत्मनिर्भर भारत, चीन के साथ समान स्तर पर बातचीत करने में बेहतर स्थिति में होगा तथा अचानक बदलावों का शिकार होने के बजाय संबंधों को स्थिर एवं व्यावहारिक बनाए रखेगा। ’

बढ़ रहा है असंतुलन : चीन को भारत के निर्यात में लगातार गिरावट के कारण असंतुलन गहराता जा रहा है, जिससे द्विपक्षीय व्यापार में भारत की हिस्सेदारी दो दशक पहले के 42.3 प्रतिशत से घटकर आज केवल 11.2 प्रतिशत रह गई है। इस तरह की संरचनात्मक निर्भरता भारत को गंभीर भू-राजनीतिक जोखिमों के प्रति संवदेनशील बनाती है ।

क्या है स्थिति : ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने कहा कि 2014 से 2024 के बीच भारत के आयात परिदृश्य पर चीन का प्रभुत्व और अधिक बढ़ गया है। भारत के दूरसंचार और इलेक्ट्रॉनिक आयात में इसकी हिस्सेदारी 57.2 प्रतिशत तक पहुंच गई, जबकि मशीनरी एवं हार्डवेयर में यह 44 प्रतिशत है। रसायन एवं दवा के आयात में 28.3 प्रतिशत के साथ यह दूसरे स्थान पर रहा। इरिथ्रोमाइसिन जैसे एंटीबायोटिक के मामले में चीन भारत की 97.7 प्रतिशत आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। इलेक्ट्रॉनिक में वह 96.8 प्रतिशत सिलिकॉन वेफर्स और 86 प्रतिशत फ्लैट पैनल डिस्प्ले को नियंत्रित करता है। नवीकरणीय ऊर्जा में 82.7 प्रतिशत सौर सेल और 75.2 प्रतिशत लिथियम आयन बैटरियां चीन से आती हैं। रोजमर्रा के उत्पाद जैसे लैपटॉप (80.5 प्रतिशत हिस्सा), कढ़ाई मशीनरी (91.4 प्रतिशत) और विस्कोस यार्न (98.9 प्रतिशत) चीन से आते हैं। यह जबरदस्त प्रभुत्व चीन को भारत के खिलाफ संभावित लाभ प्रदान करता है, जिससे राजनीतिक तनाव के समय आपूर्ति श्रृंखला दबाव के उपकरण में बदल जाती है।

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