

कोलकाता: वोटर सूची के विशेष गहन संशोधन (SIR) को लेकर बंगाल में विवाद और तेज हो गया है। इसी मुद्दे पर शनिवार को प्रेस क्लब में आयोजित ‘एसआईआर: नागरिक के मतदान अधिकार पर हमला’ विषयक बैठक में शामिल होकर राजनेता योगेंद्र यादव और अर्थशास्त्री पराकला प्रभाकर ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाये।
योगेंद्र यादव ने दावा किया कि एसआईआर का वास्तविक लक्ष्य पश्चिम बंगाल है। उनके अनुसार, बिहार एसआईआर की प्रयोगशाला था, लेकिन इसे खास तौर पर बंगाल के लिए बनाया गया है। 2002 के नियमों से इस बार के निर्देश पूरी तरह अलग हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा और आयोग इसे मतदाता सूची ‘शुद्धीकरण’ बताकर प्रचारित कर रहे हैं, जबकि असल उद्देश्य ‘मतदाताओं को बंदी बनाने की राजनीतिक रणनीति’ है।
योगेंद्र ने केंद्र के स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि 1 जनवरी तक राज्य में वयस्कों की अनुमानित संख्या 7 करोड़ 68 लाख 70 हजार है, जबकि 4 नवंबर को आयोग ने मतदाताओं की संख्या 7 करोड़ 67 लाख 50 हजार बताई। उन्होंने पूछा, जब दोनों आंकड़ों में अंतर बेहद कम है, तो बंगाल में एक करोड़ नाम हटाने का दावा किस आधार पर किया जा रहा है? वहीं, अर्थशास्त्री प्रभाकर ने एसआईआर को रक्तहीन राजनीतिक नरसंहार बताया और कहा कि इससे जनता के मतदान अधिकार पर सीधा प्रहार हो रहा है।
प्रभाकर का कहना है कि यदि किसी के दस्तावेज में गड़बड़ी है या उसने गलत जानकारी दी है, तो कार्रवाई हो सकती है, लेकिन वैध मतदाताओं को परेशान करना लोकतांत्रिक संतुलन के लिए खतरा है। बैठक में पूर्व मंत्री पूर्णेंदु बसु सहित कई शिक्षाविदों ने भी इसे राजनीतिक रूप से प्रेरित प्रक्रिया बताया। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि नागरिक अधिकार छीने गए, तो बंगाल की जनता सड़कों पर उतरकर विरोध करेगी।
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