दिन : गुरुवार
समय : दोपहर के 12 बजे
स्थान : हावड़ा मैदान मेट्रो स्टेशन
गंगा के सरफेस से 100 फीट नीचे से गुजरी मेट्रो
केएमआरसीएल ने किया मीडिया के साथ ‘सेफ्टी टेस्ट’
‘टनल वेंटिलेशन सिस्टम’ से यात्रियों को नहीं हुई समस्या
एक नजर में हावड़ा मैदान से एस्प्लेनेड का सफर
14 किलोमीटर की रफ्तार से चल रही मेट्रो दोपहर के 12.11 बजे हावड़ा मैदान से छूटी
12.13 बजे बंकिम सेतु किया क्रास
12.14 बजे हावड़ा स्टेशन में किया प्रवेश
12.15 बजे हावड़ा डीआरएम बिल्डिंग किया पार
12.17 बजे हुगली गंगा नदी में किया गया प्रवेश
12.18 बजे नदी के बीच पहुंची मेट्रो
12.20 बजे गंगा नदी को मेट्रो ने किया पार
12.24 बजे महाकरण में प्रवेश
12.27 बजे महाकरण से निकली
12.33 एस्प्लेनेड पहुंची
हावड़ा : देश की पहली अंडरवाटर मेट्राे ट्रेन से पहला सफर। यह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं था। रोमांच भरा यह सफर करीब 100 मीडिया और मेट्रो कर्मियों को लेकर किया गया। इस सफर का गवाह सन्मार्ग की पत्रकार मेघा सुरोलिया रहीं। हावड़ा मैदान से सफर की शुरुआत हुई। तब दोपहर के लगभग 12 बज रहे होंगे जब सभी को हावड़ा मैदान से मेट्रो के स्टेशन में प्रवेश कराया गया। बाहर चिलचिलाती धूप, गंगा का पानी भी गरम हो गया था लेकिन मेट्रो के भीतर का नजारा ही अलग था। देश के इस अद्भुत इंजीनियरिंग का नजारा देखने के लिए हर कोई बेकरार नजर आया। बाहर का पारा भले ही 40 से 42 डिग्री था परंतु दिल की धड़कनें 100 के रफ्तार से मानो दौड़ रही थीं। मेट्रो गेट का जब दरवाजा खुला तो मानो दिल की धड़कनें और तेज होने लगीं। इंतजार था मेट्रो के चलने का। मेरे साथ ही सभी के मन में केवल एक ही सवाल था कि आखिर गंगा के नीचे से मेट्रो ट्रने गुजरेगी तो क्या होगा ? दोपहर करीब 12.11 बजे जैसे ही मेट्रो रवाना हुई मानो मेरे साथ हर किसी के चेहरे पर एक अजीब सी खुशी थी। खुशी हो भी क्यो न, यह पहला मौका था जब मेट्रो गंगा सरफेस से 100 फीट नीचे से गुजरनेवाली थी। हावड़ा मैदान से जब मेट्रो हावड़ा स्टेशन की ओर बढ़ी तो उद्घोषणाएं शुरू हो गयीं। अब हम गंगा में प्रवेश करनेवाले हैं। यह सुनकर हमलोगों ने तालियां बजायीं। इसके ठीक 6 मिनट के बाद यानी 12.17 बजे मेट्रो ठीक गंगा नदी में प्रवेश कर चुकी थी। तभी यह उद्घोषणा की गयी कि हमलोग अभी गंगा के सरफेस से 100 फीट नीचे हैं। इसके बावजूद न ही हमें सास लेने में कोई दिक्कतें आयीं और न ही कोई और परेशानी हुई। एक दूसरे से यही कह रहे थे कि अभी हम गंगा के नीचे से गुजर रहे थे। हम सब शांत थे और ट्रेन के गुजरने का अनुभव कर रहे थे। इसके बाद जब कुछ समय गंगा के बीचोंबीच ट्रेन रोकी गयी थी इस दौरान मेरी महिला फोटोग्राफर अर्पिता चंद्रा भी थीं और हमलोगों ने इस ऐतिहासिक पल को अपने मोबाइल के कैमरे में कैद कर लिया, ताकि यह हमेशा के लिए यादगार बन जाये। इसके साथ ही जो सवाल मेरे मन में था कि आखिर गंगा के नीचे से ट्रेन गुजरती है तो क्या होगा। ऐसा कुछ नहीं बल्कि यहां भी सामान्य मेट्रो यात्रा की तरह ही सब कुछ था। इसका मुख्य कारण टनल में लगाये गये टनल वेंटिलेशन सिस्टम जिसके बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है। वहां मौजूद केएमआरसीएल के जीएम एडमिनिस्ट्रेशन ए.के. नंदी ने बताया कि 520 मीटर लंबी सुरंग को पार करने में महज 46 सेकेंड का समय लगेगा, परंतु यह एक सेफ्टी टेस्ट है तो ट्रेन की रफ्तार 14 किलोमीटर है। इसलिए टनल को पार करने में 3 मिनट का समय लगा और हमने 12.20 पर टनल को पार कर लिया। इसके बाद कुछ समय के अंतराल के बाद ट्रेन आगे बढ़ी और महाकरण को पार करते हुए एस्प्लेनेड पहुंच गयी। इस दौरान हमें मोटरमैन की केबिन में जाकर वहां से टनल को देखने का मौका भी मिला। इसके साथ ही मेट्रो रेक में भी सुरक्षा के लिए लिहाज से सभी चीजें थीं। रेक में इमरजेंसी गेट, फायर एक्सटिंग्विशर, उसका गाइड, सीसीटीवी, दरवाजे के पास न खड़े हों इसका टैग, बंद होते दरवाजे में उंगली न लगायें, आपातकालीन कॉल बटन, स्पीकर, मौटरमैन में सीसीटीवी और टीवी है जिसके माध्यम से रेक में मौजूद लोगों काे साफ देखा जा सकेगा।
‘टनल वेंटिलेशन सिस्टम’ से सुरक्षित रही मेरी यात्रा : दरअसल गंगा के नीचे बनाये गये इस ईस्ट व वेस्ट टनल में टनल वेंटिलशन सिस्टम लगाया गया है। हुगली नदी के नीचे से गुजरते समय जब मेट्रो सुरंग के बीचो-बीच से गुजरेगी उस समय यह जमीन से करीब 36 फीट नीचे होगी। उतनी गहराई में यात्रियों को ऑक्सीजन की आपूर्ति कैसे होगी, यह सवाल कई मेेरे मन में घूम रहा था। मेट्रो में मेेरे साथ मौजूद केएमआरसीएल के चीफ इलेक्ट्रिकल इंजीनियर जी. पी. हल्दार से जब मैंने पूछा तो उन्होंने बताया कि ये टनल वेंटिलेशन सिस्टम सिर्फ अंदर की गर्म हवा को खींचकर बाहर निकालेगी बल्कि बाहर से ठंडी हवा भी सुरंग के अंदर पहुंचेगी। नदी के नीचे मेट्रो की सुरंग में 3 तरह के फैन्स का इस्तेमाल होगा। इसमें पहला फैन ओटीईएफ ओवर ट्रैक एग्जॉस्ट फैन, दूसरा यूपीएस फैन और तीसरा फैन टीडीएफ यानी टनेल वेंटिलेशन फैन है। तीनों तरह के पंखे लोअर कंक्रस लेवेल यानी टिकट काउंटर और प्लेटफार्म के बीच मशीन रूम में रहेंगे। इससे यात्रियों को सांस लेने में कुछ समस्या नहीं होगी। आपातकालीन स्थिति में अगर ट्रेन में गड़बड़ी हो गयी या फिर आग लग गयी, ऐसे में मेट्रो से यात्रियों को निकालने के लिए दोनों साइड डिस्चार्ज के ऑप्शन हैं और पाथ वे बनाये गये हैं। स्टेशन पर ऑपरेशन कंट्रोल सिस्टम बनाया गया है। इसके तहत मोटरमैन इसकी जानकारी स्टेशन मास्टर व आरपीएफ को देगा। इसके बाद ट्रेन में फंसे यात्रियों को वह किसी स्मार्ट यात्री की मदद से निकाल सकेंगे। यह सुविधा नार्थ-साउथ मेट्रो में नहीं होगी।
टनल में हमेशा रहेगी लाइटिंग की व्यवस्था : इंजीनियर ने बताया कि मेट्रो टनल में हमेशा ही लाइटिंग की व्यवस्था रहेगी। अगर कभी भी किसी कारण लाइट चली भी जाती है तो इमरजेंसी लाइट भी रहेगी। इससे यात्रियों को आपातकालीन स्थिति में पाथ वे से निकल जाने में कोई असुविधा नहीं होगी। साथ दो स्टेशनों के बीच की दूरी भी 1 से डेढ़ किलोमीटर ही है।
सिद्धू और सीनू का था बेहतरीन अनुभव : बीईएमएल के रेक को चलाने के लिए बंगलुरू से ही दो माेटरमैन आये थे सिद्धू व सीनू जिनका मेट्रो चलाकर बेहतरीन अनुभव रहा। उनके इस अनुभव के बारे में जब हमने पूछा तो उन्होंने कहा कि वे गंगा में जाने के लिए एक्साइटेड थे। इस ऐतिहासिक क्षण का वे भी हिस्सा बने। उनके लिए गौरव का विषय है। उम्मीद है कि जिस प्रकार मेरी यात्रा यादगार व सुरक्षित थी, उसी तरह दिसम्बर से आम लोगों के लिए भी यात्रा अनोखी व यादगार होगी।
देश की पहली अंडरवाटर मेट्राे ट्रेन का यादगार सफर
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