भारत

अरावली से दिल्ली को श्वास, राजस्थान को पानी

राजस्‍थान-हरियाणा में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर भारी विरोध, आंदोलनकारी सड़कों पर उतरे

नयी दिल्ली : देश के कई राज्यों में फैले अरावली पर्वतमाला को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश के पर्यावरणविदों और बुद्धिजीवियों-अरावली पर बसे ग्रामीणों के बीच भारी आक्रोश है। पर्यावरणविद् और जलवायु विशेषज्ञ-कार्यकर्ता इस पर्वतमाला के भविष्य को लेकर इसके समाप्त होने के गंभीर खतरे की जहां आशंका व्यक्त कर रहे हैं, वहीं भाजपा नीत राजग सरकार का कहना है कि अरावली का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा संरक्षित रहेगा।

2.5 अरब साल पुरानी पर्वतमाला बेहद जरूरी 

अरावली पर्वतमाला की सुप्रीम कोर्ट द्वारा संस्तुति प्राप्त संशोधित परिभाषा से बड़े पैमाने पर खनन के रास्ते खुलने की आशंकाओं को केंद्र सरकार ने स्पष्ट तौर पर खारिज किया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा खनन पर लगाए गए प्रतिबंध का उल्लेख करते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली पर्वतमाला पर अनुमोदित परिभाषा से अरावली क्षेत्र का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत आ जाएगा।

पर्वत शृंखला का निर्माण

अरावली पर्वत शृंखला राजधानी शहर दिल्लीवासियों के लिए ‘फेफड़ों’ की तरह का अत्यावश्यक कार्य करती है। यह वायु प्रदूषण को छानकर और मौसमी जल धाराओं के जरिये भूजल को रिचार्ज करती है। बांधवारी जैसी पर्वत शृंखला राजस्थान से आने वाले मरुभूमि के विस्तार को रोकती हैं। यह थार रेगिस्तान की रेत को भारत-गंगा के मैदानों में फैलने से रोकती है, जिसके फलस्वरूप हरियाणा और उत्तर प्रदेश में कृषि और उत्पादन को संरक्षित रहती है। तांबा, जस्ता, संगमरमर और सीसा जैसे खनिजों से समृद्ध यह पर्वत शृंखला भारत की खनन अर्थव्यवस्था को युगों से बढ़ावा देती आ रही है।

अरावली पर्वतमाला 300 से अधिक प्रजातियों के पक्षियों और अमूल्य वनस्पतियों का आवास है। यह चंबल, लूणी और साबरमती नदियों को पानी देने वाले जलक्षेत्रों का भी पोषण करती है, जिससे सूखाग्रस्त राजस्थान और गुजरात में जल संकट से निपटने में सहायता मिलती है। अरावली पर्वत शृंखला का संरक्षण वायु गुणवत्ता, बाढ़ नियंत्रण और भारत के बड़े भू-भाग की सांस्कृतिक विरासत को भी सुनिश्चित करता है।

अरावली उत्तर-पश्चिमी भारत की अत्यंत प्राचीन भूपर्पटी का एक बेहद अहम हिस्सा है। अरावली पर्वत शृंखला में पृथ्वी के लगभग 2.5 अरब वर्षों का इतिहास संरक्षित है। बनारस हिंदू विवि द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि अरावली की चट्टानें ‘आर्कियन युग’ के ‘नीस और ग्रेनाइट पत्थर’ से बनी है। आर्कियन युग वह कालखंड था, जिस दौरान पृथ्वी की पहली ठोस भूपर्पटी का निर्माण हुआ। इसी युग में पृथ्वी पर वर्तमान कालखंड में पाई जाने वाली सबसे पुरानी चट्टानों का निर्माण हुआ था।

चित्तौड़गढ़ अंचल में भारतीय प्रायद्वीप की कुछ सबसे प्राचीन भू-आकृतियां मिलती हैं। इनकी निचली परत नीस-ग्रेनाइट चट्टानों से बनी हैं व ऊपरी परत अरावली पर्वतमाला की नवनिर्मित चट्टानों से ढकी है। राजस्थान के भादेसर क्षेत्र में ये चट्टानें उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली लंबी पट्टियों के रूप में दिखती हैं।

अरावली पर्वतमाला एक प्राचीन शृंखला 

अरावली पर्वतमाला दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में से एक है। यह पृथ्वी पर डायनासोर के पाए जाने जाने के पूर्व से मौजूद है। यह पर्वत शृंखला करीब 2.5 अरब वर्ष पुरानी है। दिल्ली से दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगभग 670-700 किमी तक यह फैली हुई है। अरावली पर्वत शृंखला हरियाणा, राजस्थान और गुजरात से होते हुए अहमदाबाद के समीप समाप्त होती है।

न्यूनतम 10 से अधिकतम 100 किमी तक की चौड़ाई वाली यह प्राचीन पर्वत शृंखला उत्तर-पश्चिमी भारत में एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी और अहम भौगोलिक संरचना का निर्माण करती है। इस पर्वतमाला की औसत ऊंचाई 600-900 मीटर है। राजस्थान के माउंट आबू में स्थित गुरु शिखर 1722 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसका एक भूमिगत विस्तार हरिद्वार तक पहुंचता है, जो गंगा और सिंधु नदी घाटियों को बांटता है।

अरावली पर्वतमाला सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद से चर्चा में है। लोग आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि कोर्ट का यह फैसला अरावली की ‘मौत का वारंट’ हो सकता है। ‘मौत का वारंट’ जैसे शब्द के प्रयोग का कारण भी है। गुजरात से दिल्ली तक फैली अरावली पर्वतमाला 2.5 अरब साल से थार के रेगिस्तान और गंगा के उपजाऊ मैदान के बीच सुदृढ़ दीवार है। चंबल, साबरमती और लूणी जैसी अहम नदियां जिसके संरक्षण में बह रही हैं, हालांकि आकार के लिहाज से यह कहीं पहाड़ लगता है, कहीं पहाड़ी और कहीं सिर्फ टीला।

दावा किया जा रहा है कि ऐसी अरावली का 90 फीसदी हिस्सा सुप्रीम कोर्ट के नये आदेश की नयी परिभाषा के हिसाब से अरावली होने की मान्यता से बाहर हो जायेगा। क्योंकि, कोर्ट ने कहा है कि 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियों को अब अरावली शृंखला का नहीं माना जाएगा। ऐसे में खनन माफिया से कब तक अरावली का अस्तित्व बचा रहेगा, जिसनें 2.5 अरब वर्षों से देश को मूक सेवा दी है?

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