बेंगलुरु : कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पूर्व मुख्यमंत्री बी. एस. येदियुरप्पा के खिलाफ दर्ज यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत मामले को रद्द करने से बृहस्पतिवार को इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति एम. आई. अरुण ने कथित अपराध का संज्ञान लेने और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेता को समन जारी करने के निचली अदालत के 28 फरवरी के आदेश को बरकरार रखा।
हालांकि अदालत ने निर्देश दिया कि मुकदमें के दौरान जब तक बहुत जरूरी ना हो तब तक येदियुरप्पा की व्यक्तिगत उपस्थिति पर जोर नहीं दिया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि उनकी ओर से व्यक्तिगत उपस्थिति में किसी भी तरह की छूट के लिए दायर याचिका को स्वीकार किया जाना चाहिए हालांकि अगर बहुत जरूरी हो तो उन्हें बुलवाया जा सकता है। एकल न्यायाधीश की पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि येदियुरप्पा निचली अदालत से राहत का अनुरोध करने को लेकर स्वतंत्र हैं।
क्या है मामला
पीड़िता की मां की ओर से दर्ज कराई गई शिकायत के अनुसार, येदियुरप्पा ने फरवरी 2024 में बेंगलुरु स्थित अपने आवास पर एक बैठक के दौरान उसकी 17 वर्षीय बेटी का कथित तौर पर यौन शोषण किया था। सदाशिवनगर पुलिस ने 14 मार्च 2024 को मामला दर्ज किया, जिसे बाद में जांच के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीआईडी) को सौंप दिया गया। एजेंसी ने फिर से प्राथमिकी दर्ज की और बाद में पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया।
ये भी पढ़ें :- कंगना रनौत पर चलेगा राष्ट्रद्रोह का मुकदमा
येदियुरप्पा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी.वी. नागेश ने तर्क दिया कि मामला राजनीति से प्रेरित है और शिकायत में विश्वसनीयता का अभाव है। उन्होंने बताया कि शिकायतकर्ता और उनकी बेटी ने फरवरी 2024 में कई बार बेंगलुरु पुलिस आयुक्त से मुलाकात की थी, लेकिन 14 मार्च तक किसी भी आरोप का उल्लेख नहीं किया था।
नागेश ने उच्च न्यायालय से कार्यवाही रद्द करने का आग्रह किया और कहा कि आरोप निराधार हैं। इसका विरोध करते हुए विशेष लोक अभियोजक प्रो. रविवर्मा कुमार ने तर्क दिया कि अधीनस्थ अदालत का आदेश तर्कसंगत था और उसमें उचित न्यायिक विवेक का प्रयोग परिलक्षित हुआ था।
ये भी पढ़ें :- Godrej ने ISRO को पहला ‘ह्यूमन-रेटेड’ L110 इंजन सौंपा