गया: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज बुधवार(19 जून) को बिहार के राजगीर में ऐतिहासिक नालंदा यूनिवर्सिटी के नए कैंपस का उद्घाटन किया। सुबह के समय नालंदा यूनिवर्सिटी पहुंचे पीएम मोदी ने पहले विश्वविद्यालय की पुरानी धरोहर को करीब से देखा। इसके बाद वह यहां से नए कैंपस में पहुंचे, जहां उन्होंने बौधि वृक्ष लगाया और फिर नए कैंपस का उद्घाटन किया। बता दें कि साल 2016 में नालंदा के खंडहरों को संयुक्त राष्ट्र विरासत स्थल घोषित किया गया था, इसके बाद विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य 2017 में शुरू किया गया। विश्वविद्यालय का नया कैंपस नालंदा के प्राचीन खंडहरों के पास बनाया गया है। इस नए कैंपस की स्थापना नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के माध्यम से की गई है। इस अधिनियम में स्थापना के लिए 2007 में फिलीपींस में आयोजित दूसरे पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में लिए गए निर्णय को लागू करने का प्रावधान किया गया था।
40 कक्षाएं, 1900 बच्चों के बैठने की व्यवस्था
नालंदा यूनिवर्सिटी में दो अकेडमिक ब्लॉक हैं, जिनमें 40 क्लासरूम हैं। यहां पर कुल 1900 बच्चों के बैठने की व्यवस्था है। यूनिवर्सिटी में दो ऑडिटोरयम भी हैं जिसमें 300 सीटे हैं। इसके अलावा इंटरनेशनल सेंटर और एम्फीथिएटर भी बनाया गया है, जहां 2 हजार लोगों के बैठने की क्षमता है। यही नहीं, छात्रों के लिए फैकल्टी क्लब और स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स सहित कई अन्य सुविधाए भी हैं। नालंदा यूनिवर्सिटी का कैंपस ‘NET ZERO’ कैंपस हैं, इसका मतलब है कि यहां पर्यावरण अनुकूल के एक्टिविटी और शिक्षा होती है। कैंपस में पानी को रि-साइकल करने के लिए प्लांट लगाया गया है, 100 एकड़ की वॉटर बॉडीज के साथ-साथ कई सुविधाएं पर्यावरण के अनुकूल हैं।
12वीं शताब्दी में आक्रमणकारियों ने किया नष्ट
नालंदा यूनिवर्सिटी का इतिहास काफी पुराना है। लगभग 1600 साल पहले नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना पांचवी सदी में हुई थी। जब देश में नालंदा यूनिवर्सिटी बनाई गई तो दुनियाभर के छात्रों के लिए यह आर्कषण का केंद्र था। विशेषज्ञों के मुताबिक 12वीं शताब्दी में आक्रमणकारियों ने इस विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया था। इससे पहले करीबन 800 सालों तक इन प्राचीन विद्यालय ने ना जाने कितने छात्रों को शिक्षा दी है।
ह्वेनसांग ने भी नालंदा से ली शिक्षा
नालंदा विश्वविद्यालय की नींव गुप्त राजवंश के कुमार गुप्त प्रथम ने रखी थी। पांचवीं सदी में बने प्राचीन विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिनके लिए 1500 अध्यापक हुआ करते थे। छात्रों में अधिकांश एशियाई देशों चीन, कोरिया और जापान से आने वाले बौद्ध भिक्षु होते थे। इतिहासकारों के मुताबिक, चीनी भिक्षु ह्वेनसांग ने भी सातवीं सदी में नालंदा में शिक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने अपनी किताबों में नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता का जिक्र किया है। यह बौद्धों के दो सबसे अहम केंद्रों में से एक था।