… और बेटी की जिंदगी में जहर घोलने को आ गये | Sanmarg

… और बेटी की जिंदगी में जहर घोलने को आ गये

कोलकाता : यह एक ऐसी बेटी की कहानी है जिसे उसके पिता चार साल की उम्र में छोड़ कर चले गए थे। मां ने ही उसे पाल पोस कर बड़ा किया। ब्लड कैंसर की मरीज होने के बावजूद कभी भी बेटी को अभाव का अहसास नहीं होने दिया। मौत से जंग लड़ते हुए वह हार गई और 2023 में उसका निधन हो गया। अब पिता लौट आए हैं उसकी मां को मिलने वाली दौलत में हिस्सा बंटाने के लिए। एडवोकेट आशिष चौधरी बताते हैं कि अनुष्का की मां वर्णांली दे बेहला में रहती थी और केंद्र सरकार के एक विभाग में कर्मचारी थी। कार्यरत की अवस्था में ही उसका निधन हो गया था। मां के निधन के बाद अनुष्का टूट गई थी। पिता आए तो उसे लगा था कि शायद वे उसका हाथ थाम लेंगे, पर पिता ने तो अनुष्का की मां को मिलने वाली पेंशन और ग्रेच्यूटी आदि में अपना दावा ठोक दिया। पिता के इस चेहरे को देख कर अनुष्का हैरान रह गई। दरअसल उनके पास एक कागज था। यह उन सुनहरे दिनों का कागज था जब अनुष्का के माता-पिता साथ रहते थे। वर्णांली दे ने अपने नॉमिनी के रूप में पति और बेटी दोनों का नाम दिया था। जब सुनहरे दिन बेवफायी के बादल से ढक गए तो वर्णांली ने 2019 में अनुष्का को सौ फीसदी नॉमनी बना दिया। अनुष्का की तकदीर में पिता की बेवफायी के बाद नौकरशाही का सितम बाकी था। नॉमिनी में बदलाव को वर्णांली के सर्विस बुक में रिकार्ड नहीं किया गया था। लिहाजा उसे हाई कोर्ट में रिट दायर करनी पड़ी। जस्टिस राजाशेखर मंथा ने मामले की सुनवायी के दौरान नौकरशाही को जमकर फटकार लगाते हुए सवाल किया कि केंद्र सरकार के एक दफ्तर में इस तरह की लापरवाही कैसे की जा सकती है। नॉमिनी में बदलाव का कागज तो है पर इसे सर्विस बुक में रिकार्ड नहीं किया गया है। जस्टिस मंथा ने अफसोस जताते हुए कहा कि मां के निधन के बाद एक असहाय बेटी को अपना हक पाने के लिए हाई कोर्ट आना पड़ा है। उन्होंने आदेश दिया है कि दो माह के अंदर सारी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद अनुष्का को उसका हक दिया जाए। अनुष्का कोर्ट में तो जीत गई पर पिता का स्नेह पाने का हक एक बार फिर हार गई।

 

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