Gupt Navratri करने का प्रत्यक्ष फल मिलता है | Sanmarg

Gupt Navratri करने का प्रत्यक्ष फल मिलता है

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शिवसंहिता और अन्य धर्मग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्र में प्रमुख रूप से भगवान शिव और देवी आदि शक्ति मां पार्वती की आराधना और उपासना की जाती है। आषाढ़ तथा माघ मास के नवरात्रों को गुप्त नवरात्र कहा जाता है। आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्र में जहां वामाचार पद्धति को अधिक मान्यताएं नहीं दी जाती, वहीं माघ मास के गुप्त नवरात्र में वामाचार पद्धति को ही श्रेष्ठता दी गई हैं। इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरूप का नाम सर्वेश्वर्यकारिणी देवी हैं।
आषाढ़ मास के नवरात्र शाक्त और शैव पद्धति पर आधारित है – आषाढ़ मास के गुप्त नवरात्र का समय शाक्य एवं शैव धर्मावलम्बियों के लिए पैशाचिक, वामाचारी क्रियाओं के लिए अधिक शुभ एवं उपयुक्त माना जाता है। इसे प्रलय व संहार के देवता महाकाल एवं महाकाली की पूजा की जाती है। दस महाविद्याओं (तंत्र -साधना) की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक तंत्र-साधना के लिए माँ काली, माँ तारा, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, माँ धूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं। तंत्र और शाक्त मतावलंबी साधना की दृष्टि से गुप्त नवरात्रों के कालखंड को बहुत सिद्धिदायी मानते हैं। माँ वैष्णों देवी, पराम्बा देवी, हिंगलाज देवी और कामख्या देवी की सिद्धि का का अहम पर्व माना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि यदि कोई इन महाविद्याओं के रूप में शक्ति की उपासना करें तो जीवन धन -धान्य ,राज्य सत्ता ,ऐश्वर्य से भर जाता हैं। गुप्त नवरात्र में की गई मंत्र साधना निष्फल नहीं जाती। मानव के समस्त रोग -दोष व ग्रहों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधना काल नहीं है। श्री, वर्चस्व,आयु,आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान, व्रत व उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं।
गुप्त नवरात्र का प्रत्यक्ष फल -मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा करके श्रीरामजी ने अपनी खोई हुई शक्तियां पाई थीं, इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है। गुप्त नवरात्र में 10 महाविद्याओं की साधना करके ही,ऋषि वशिष्ठ, ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के धनी बन गए थे। उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि ऋषि विश्वामित्र ने तो एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी। इसी तरह लंकापति रावण के पुत्र मेघनाथ में अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्रों में आराधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन गया था।
एक प्राचीन कथा -गुप्त नवरात्रों से संबंधित एक प्राचीन कथा जुड़ी हुई है-एक समय ऋषि शृंगी अपने भक्तजनों को दर्शन दे रहे थे। तभी भक्तजनों की भीड़ में से अचानक एक स्त्री निकल कर आई और करबद्ध होकर ऋषि शृंगी से प्रार्थना करते हुए बोली -‘भगवन ! मेरे पति दुर्व्यसनों से सदा घिरे रहते हैं जिसके कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती और न ही धर्म और भक्ति से जुड़े कोई पवित्र कार्यों का संपादन ही कर पाती हूं। वे जुआ खेलते हैं, मांस भक्षण करते हैं,उनकी किसी भी देवी-देवता में आस्था नहीं है, लेकिन मैं माँ दुर्गा की सेवा -आराधना करना चाहती हूं। उनकी भक्ति साधना से अपने पति सहित जीवन को सफल बनाना चाहती हूं।’
ऋषि शृंगी उस युवती की भक्तिभावना से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने उसे उपाय बताते हुए कहा –‘पुत्री ! बासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो जनमानस परिचित है लेकिन इसके अलावा भी दो नवरात्र और भी होते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता हैं। प्रकट नवरात्रों में नौ देवियों की उपासना होती हैं जबकि गुप्त नवरात्रों में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरूप का नाम सर्वेश्वर्यकारिणी देवी है। यदि इन गुप्त नवरात्रों में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा,साधना करता है तो माँ उसके जीवन को सफल कर देती है। लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा-पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता की पूजा करता है तो उसे जीवन में कुछ भी करने की आवश्यकता ही नहीं रहती ! यही इस गुप्त नवरात्र की महिमा है।’
उस स्त्री ने ऋषि शृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा रखते हुए गुप्त नवरात्रों की पूजा की। माँ प्रसन्न होकर प्रकट हुई और उसके जीवन में परिवर्तन आने लगा। घर में सुख -शांति आ गई। पति सन्मार्ग पर चलने लगा। इस प्रकार माता की कृपा से उसका जीवन खिल उठा।
पूर्णाहुति बहुत जरूरी है – मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए। 9 दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए पहले दिन घट स्थापना करनी चाहिए और फिर सुबह शाम -सर्वप्रथम गुप्त नवरात्रों की प्रमुख देवी सर्वेश्वर्यकारिणी माता को धूप,दीप,प्रसाद अर्पित करें। पेठे का भोग लगाएं। फिर,माँ दुर्गा की पूजा करनी चाहिए तथा रुद्राक्ष की माला से प्रतिदिन 11 माला -ऊं सर्वेश्वर्यकारिणी देव्यै नमो नमः ‘ मंत्र का जप करें। उसके बाद मनोकामना के अनुसार देवियों के किसी भी मंत्र का जप करें। यह क्रम नौ दिनों तक गुप्त रूप से जारी रखें। जैसे उदाहरण के तौर पर
-माँ काली की उपासना के लिए -‘क्रीं कालिकाये नमः।’
श्री कमला माता की उपासना के लिए -‘श्री कमलाये नमः।’
गुप्त नवरात्र में सम्पूर्ण फल की प्राप्ति के लिए अष्टमी और नवमी को आवश्यक रूप से देवी का पूजन का विधान ‘दुर्गावरिवस्या ‘व शास्त्रों में वर्णित हैं। माता के सन्मुख ‘जोत दर्शन’ एवं कन्या भोजन अवश्य करवाना चाहिए।
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
अन्जु सिंगड़ोदिया

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