

2025 भारत के लिए केवल कैलेंडर का एक और पन्ना नहीं बल्कि एक ऐसा साल साबित रहा, जब सत्ता और विपक्ष आमने-सामने दिखे, खेलों में दुनिया ने भारत का जलवा देखा, सिनेमा ने मनोरंजन से आगे बढ़कर विमर्श रचा, सांस्कृतिक क्षेत्र ने परंपरा और आधुनिकता के बीच नया संतुलन खोजा और अर्थव्यवस्था ने वैश्विक अस्थिरता के बीच अपनी जड़ें और मजबूत कीं तथा गति से दुनिया को चौंकाया।
2025 को अगर एक वाक्य में समझना हो, तो कहा जा सकता है कि भारत ने इस साल खुद को परखा भी, संवारा भी और पेश भी किया ।
राजनीति :
स्थिर सत्ता,बेचैन विपक्ष कसौटी पर लोकतंत्र
अपने तीसरे कार्यकाल में एनडीए की सरकार ने 2025 में साफ कर दिया कि सत्ता में निरंतरता केवल उपलब्धि नहीं, बल्कि जिम्मेदारी भी है। नीतियों की रफ्तार तेज रही, लेकिन उनके सामाजिक असर पर सवाल भी उतनी ही मुखरता से उठे। विपक्ष की नजर में यह सरकार मनमानी करने वाली है तो पक्ष ने इसे दृढ़ इरादों की सरकार बताया।
बिहार समेत कई राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणामों ने राजनीतिक जगत को चौंका कर रख दिया एनडीए को आशा से कहीं अधिक सफलता मिली, यहां तक कि नीतीश के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी फैक्टर भी दिखाई नहीं दिया, हालांकि विपक्ष ने एक बार फिर वोट चोरी के बल पर सत्ता पर कब्जा करने का आरोप लगाने में कोताही नहीं की।
महिला आरक्षण पर 2025 में चर्चा सिर्फ संसद तक सीमित नहीं रही। सवाल यह उठा कि क्या प्रतिनिधित्व सिर्फ संख्या से तय होगा या सामाजिक ढांचे में भी बदलाव आएगा? केंद्र बनाम राज्य व संघीय ढांचे की खींचतान पहले की तरह जारी रही तो जांच एजेंसियों, वित्तीय अधिकारों और प्रशासनिक फैसलों को लेकर टकराव बढ़ा। यह बहस सत्ता की सीमाओं और लोकतंत्र की आत्मा पर आकर ठहर गई।
यदि सत्ता पक्ष मजबूत बना रहा तो विपक्ष ने भी 2025 में शोर से ज्यादा रणनीति पर जोर दिया। पर जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना 2025 में नहीं हो पाया।
अर्थ जगत
गतिरोधों के बीच गति का चमत्कार
2025 आर्थिक दृष्टि से भारत के लिए चुनौतियों के साथ-साथ गतिरोध एवं गति तथा उपलब्धियां से भरा रहा।
भारत की उच्च विकास दर चर्चा में रही। स्टार्टअप और टेक्नोलॉजी का उभार आश्वस्त करता दिखाई दिया तो एआई और फिनटेक ने भी नए अवसर खोले। हालांकि अर्थव्यवस्था पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने का दबाव बना रहा। नौकरियों पर भी बहस चुनावी मुद्दा बनी रही, वैश्विक मंदी में भारतीय अर्थव्यवस्था का संतुलन अपेक्षाकृत स्थिर रहा, यह बड़ी उपलब्धि थी। ग्रीन एनर्जी अब नारा नहीं, नीति बनती दिखी।
कुल मिलाकर 2025 में वित्त वाणिज्य एवं अर्थ क्षेत्र में निराश नहीं किया हालांकि बहुत कुछ पाना शेष भी रहा।
फिल्म जगत
मनोरंजन नहीं, संदेश भी
साल के बीच से बीते सिने जगत ने ‘धुरंधर’ की रिकॉर्ड तोड़ धुआंधार बॉक्स ऑफिस सफलता का आनंद लिया और यह फिल्म 1000 करोड़ का भी आंकड़ा पार कर गई। इस फिल्म की सफलता ने यह साफ किया कि दर्शक अब सिर्फ स्टार नहीं, ठोस कहानी भी चाहते हैं।
जहां धुरंधर ने अपने एक्शन से सिल्वर स्क्रीन पर राज किया, वहीं छावा जैसी फिल्मों ने इतिहास को महज गौरवगान नहीं, बहस का विषय बनाया। कांतारा की सफलता से फिल्मों में भाषाई दीवारें टूटीं और बाजार और भी बड़ा हुआ। लेकिन ओटीटी बनाम थिएटर : सह-अस्तित्व की कहानी रच गए 2025 ने सिखाया कि दोनों एक-दूसरे के दुश्मन नहीं हैं।
संस्कृति
बनी रही परंपरा और आस्था
संस्कृति परंपरा एवं धर्म तथा आध्यात्मिक क्षेत्र में भी 2025 उल्लेखनीय रहा। महाकुंभ 2025 : आस्था और अर्थव्यवस्था का संगम बनकर सामने आया। धार्मिक आयोजन वैश्विक पर्यटन का बड़ा केंद्र बने। भारतीय भाषाओं के पुनर्जागरण की संभावना भी नजर आई।
हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं का डिजिटल विस्तार तेज हुआ। लोक और आदिवासी संस्कृति को पहचान मिली और सरकारी और सामाजिक स्तर पर नई पहल दिखी। युवा संस्कृति पर डिजिटल प्रभाव बढ़ता दिखाई दिया संस्कृति मंच से ज्यादा मोबाइल स्क्रीन पर दिखी।योग, आयुर्वेद और भारतीय जीवनशैली ने भी 2025 में भारत के छवि निर्माण में उल्लेखनीय योगदान दिया।
निष्कर्ष
2025 बताकर गया है कि सिर्फ उपलब्धियां गिनाना काफी नहीं, सवाल उठाना भी ज़रूरी है। राजनीति में जवाबदेही, खेल में निवेश, सिनेमा में साहस, संस्कृति में संतुलन और अर्थव्यवस्था में समावेशन यही 2025 की बड़ी सीख रही।
अगर भारत को अगले दशक में सचमुच वैश्विक नेतृत्व करना है, तो 2025 को चेतावनी और संभावना,दोनों के रूपों में याद रखना होगा। डॉ. घनश्याम बादल