

हर बारह महीने बाद हमारे सामने एक ताज़ा कैलेंडर बिलकुल कोरा कैनवास तथा इंद्रधनुष के रंग लेकर आता है। एक जनवरी यह कोई साधारण दिवसांक परिवर्तन नहीं, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक प्रस्थान बिंदु है, जो हमें रुककर सोचने, ठहरकर पीछे मुड़कर देखने और फिर से नए संकल्प के साथ शुरू करने का साहस देता है। यह वह अवसर है जब हम अपने पिछले अनुभवों को एक संदर्भ के रूप में संजोते हुए भी, उनके बोझ से अपने मन को मुक्त कर सकते हैं। हर नए साल की पहली सुबह हवा में एक अलग सी ताज़गी, आशा की एक नई लय और संभावनाओं का एक अनूठा संगीत लेकर आती है। इसी लिए इस दिन को दुनियां भर में उत्सव की तरह उत्साह से मनाया जाता है। लेकिन क्या यह सब परिवर्तन अपने आप हो जाता है? नहीं, यह तभी सार्थक बनता है जब हम खुद अपनी सोच की दिशा और दशा बदलने का निश्चय करते हैं।
हमारी सोच अक्सर आदतों के पिंजरे में कैद होती है। हम वही रास्ते चुनते हैं, वही प्रतिक्रियाएं देते हैं और वही डर साथ लेकर चलते हैं। यह पुरानी सोच एक ऐसा आरामदायक कोना बना देती है जहां से बाहर झांकना भी मुश्किल लगता है। नकारात्मकता, हार मान लेने की मानसिकता और असफलताओं का बोझ , ढर्रे पर जिंदगी, ये सब हमारी रफ्तार के रोकते हैं। पर नया साल हमें याद दिलाता है कि समय बदल रहा है, और बदलना ही प्रगति के लिए जीवन का सार है। तो क्यों न हम भी अपनी सोच को नई दिशा दें? नई सोच का अर्थ यह नहीं कि पुरानी हर बात को नकार दिया जाए बल्कि यह एक विवेकपूर्ण संतुलन है। इसमें अतीत के सबक को साथ लेकर, वर्तमान में जीते हुए, भविष्य के लिए एक लचीली, सकारात्मक और समाधान-उन्मुख मानसिकता का विकास करना होता है।
यह सबसे पहले हमारे नजरिए में बदलाव लाती है। एक ही स्थिति को हम समस्या के रूप में देखें या चुनौती के रूप में, यह हमारी सोच तय करती है। नई सोच "क्यों नहीं हो सकता" के स्थान पर "कैसे हो सकता है" पर केंद्रित होनी चाहिए , जो आशा की किरण को जिंदा रखती है। साथ ही, यह हमें जिज्ञासु बनाए रखती है, नई चीजें सीखने के लिए हमें प्रेरित करती है और हमें यह एहसास दिलाती है कि गलतियां असफलताएं नहीं, बल्कि सीखने के सोपान हैं। जीवन अनिश्चितताओं से भरा है, और पुरानी, कठोर सोच मुसीबत में टूट जाती है, जबकि नई और लचीली सोच झुकती जरूर है, लेकिन टूटती नहीं। यह अनुकूलन की क्षमता विकसित करती है। इसमें अतीत की कमियां गिनाने के बजाय, जो मिला है उसके प्रति कृतज्ञ होना और दूसरों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखना भी शामिल है।
लेकिन यह बदलाव रातों-रात नहीं आता। नए साल की शुरुआत इसे आरंभ करने का एक शुभ अवसर जरूर है। बड़े-बड़े संकल्पों के बोझ तले दबने की बजाय, एक छोटी, सकारात्मक आदत से शुरुआत करें। जैसे, रोजाना पांच मिनट शांत बैठकर अपने खुद के साथ रहना, एक अच्छी किताब के कुछ पन्ने पढ़ना, या दिन की शुरुआत तीन अच्छी बातें गिनकर करना। जब भी मन कहे "यह मेरे बस की बात नहीं", तो एक बार खुद से पूछें, "क्या इसे करने का कोई एक छोटा तरीका हो सकता है?" सोशल मीडिया की नकारात्मकता और तुलना की दुनिया से अवकाश लेकर, उस समय को अपने शौक, परिवार या स्वयं के साथ बिताएं। अपने से अलग विचार रखने वालों की बात बिना कटुता के सुनने का प्रयास करें, इससे हमारा दृष्टिकोण व्यापक होता है। और सबसे महत्वपूर्ण, अपनी कमियों के प्रति आलोचनात्मक होने के बजाय, स्वयं से वैसी ही प्रोत्साहन की भाषा बोलें जैसी किसी प्रिय मित्र से बोलते हैं।
जब एक व्यक्ति की सोच बदलती है, तो उसका पूरा जीवन बदलने लगता है। रिश्तों में एक नई मिठास आती है, कार्यक्षेत्र में रचनात्मकता बढ़ती है, और मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता है। और जब ऐसे अनेक व्यक्ति मिलकर एक समाज बनाते हैं, तो वह समाज प्रगति, शांति और सहयोग का केंद्र बन जाता है। नई सोच समस्याओं को सामूहिक चुनौती के रूप में देखना सिखाती है, जिसका समाधान मिलकर खोजा जा सकता है।
तो आइए, इस नए साल पर हम केवल नए कपड़े, नए साजो-सामान, चमक धमक ही नहीं, बल्कि एक नया दृष्टिकोण भी स्थाई रूप से धारण करें। उस सोच को अपनाएं जो बदलाव से नहीं डरती, जो सीखने के लिए हमेशा तैयार रहती है और जो हर स्थिति में एक संभावना की तलाश करती है क्योंकि सच तो यह है कि नया साल कोई जादू की छड़ी नहीं है, बल्कि एक नई शुरुआत के लिए हमारे अपने मन का बनाया हुआ एक सुंदर बहाना है। यह बहाना, अगर हम चाहें, तो हमारे जीवन की सबसे सुंदर कहानी का पहला वाक्य बन सकता है। आपकी सोच नई हो, आपका नजरिया उज्ज्वल हो और यह नया साल आपके जीवन में अनगिनत नई खुशियां, नई सफलताएं और नई संभावनाएं लेकर आए। शुभ नववर्ष । -विवेक रंजन श्रीवास्तव (युवराज)