

साल 2025 की शुरुआत भारत ने जिस दृश्य के साथ की, वह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि एक वैश्विक वक्तव्य था । प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025 में 66 करोड़ से अधिक लोगों ने त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाई — इसे मानव इतिहास का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम माना जा रहा है। इस महासमागम में 183 देशों से आए 30 लाख से अधिक विदेशी श्रद्धालु शामिल हुए । 77 से अधिक देशों के 118 राजनयिकों का एक साथ कुंभ क्षेत्र में स्नान करना इस बात का संकेत था कि यह केवल आस्था का आयोजन नहीं, बल्कि वैश्विक सांस्कृतिक संवाद का मंच बन चुका है।
इसी तरह अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण के बाद श्रद्धालुओं का ज्वार उमड़ पड़ा है जो हजारो वर्षो के इंतज़ार की तरसी आँखों का नतीजा है । काशी विश्वनाथ, अयोध्या और प्रयागराज जैसे तीर्थस्थलों पर हर वर्ष आने वाले करोड़ों श्रद्धालु केवल आँकड़े नहीं हैं—वे उस सनातन सभ्यतागत ऊर्जा का प्रमाण हैं, जिसने भारत को सहस्राब्दियों से एकजुट रखा है ।
लेकिन भारत के साल 2025 की कहानी यहीं से शुरू होती है। यही भारत, जो आस्था, दर्शन और परंपरा का वैश्विक केंद्र रहा है, आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डिजिटल टेक्नोलॉजी और अत्याधुनिक विज्ञान में भी दुनिया का नेतृत्व करने की ओर अग्रसर है। यह उसी स्वाभाविक विकास का प्रमाण है जिसमें सनातन धर्म से विज्ञान और परंपरा से तकनीक तक भारत का मूल स्वभाव निरंतर परिस्कृत होता दिखाई देता है।
आज वैश्विक टेक्नोलॉजी इकोसिस्टम में भारत की पहचान केवल एक बाज़ार की नहीं बल्कि नेतृत्व करने वाले मानव मस्तिष्कों की है। दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों के कृत्रिम बुद्धिमत्ता और टेक्नोलॉजी विभागों का नेतृत्व भारतीय मूल के पेशेवर कर रहे हैं। प्रभाकर राघवन, गूगल के सर्च और टेक्नोलॉजी सिस्टम्स के प्रमुख, वैश्विक सूचना संरचना को आकार दे रहे हैं। अमर सुब्रमण्यन, एप्पल में कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग के उपाध्यक्ष, भविष्य के स्मार्ट डिवाइसेज़ की दिशा तय कर रहे हैं। रोहित प्रसाद, अमेज़न के हेड साइंटिस्ट (कृत्रिम बुद्धिमत्ता), एलेक्सा और जनरेटिव कृत्रिम बुद्धिमत्ता के वैश्विक विकास का नेतृत्व कर रहे हैं। इसी सूची में विशाल शाह (मेटा कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रोडक्ट्स), अपर्णा रमानी (मेटा में वाइस प्रेसिडेंट ऑफ इंजीनियरिंग), शिल्पा कोल्हटकर (एनवीडिया में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिए ग्लोबल हेड), और श्रीनिवास नारायण (ओपन ए आई में बी टू बी एप्लिकेशंस के मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी) जैसे नाम शामिल हैं। ये केवल व्यक्तिगत सफलताएँ नहीं, बल्कि उस शिक्षा, संस्कृति और बौद्धिक परंपरा का परिणाम हैं जिसे भारत ने दशकों से पोषित किया है।
इसी पृष्ठभूमि में इन्हीं महीनों में वैश्विक निवेश का रुझान असाधारण रूप से भारत की ओर तेज़ी से झुक रहा है। गूगल ने भारत में 2 बिलियन डॉलर की नई डिजिटल अवसंरचना, क्लाउड और साइबर सुरक्षा पहलों की घोषणा की है। माइक्रोसॉफ्ट ने एआई डेटा सेंटर, स्किलिंग कार्यक्रम और क्लाउड क्षमता विस्तार के लिए 1.5 बिलियन डॉलर की योजना जारी की है । अमेज़न ने 20 लाख नौकरियाँ सृजित करने का लक्ष्य रखते हुए लॉजिस्टिक्स, वेयरहाउसिंग, अमेज़ॅन वेब सर्विसेज़ और रिटेल नेटवर्क में भारी निवेश बढ़ाया है। इसके अलावा, दुनिया की लगभग दो दर्जन बहुराष्ट्रीय टेक और विनिर्माण कंपनियाँ भारत को अपनी अगली निवेश मंज़िल के रूप में चुन रही हैं। सेमीकंडक्टर मिशन के तहत अब तक 8 बिलियन डॉलर से अधिक के निवेश प्रस्ताव या तो स्वीकृत हो चुके हैं या प्रक्रिया में हैं । माइक्रोन का गुजरात प्रोजेक्ट अकेले 2.75 बिलियन डॉलर का है।
व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की 2024 रिपोर्ट के अनुसार, 2023–24 में भारत दुनिया का दूसरा सबसे आकर्षक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश गंतव्य बना—केवल अमेरिका के बाद। इसी वर्ष की पहली छमाही में 85 बिलियन डॉलर का निर्यात हुआ, और भारत ऑटोमोबाइल क्षेत्र में जापान को पीछे छोड़कर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा वाहन निर्यातक बनकर उभरा है।
इस आर्थिक उछाल की सबसे बड़ी नींव भारत की जनसांख्यिकीय शक्ति है जहाँ औसत आयु 28 वर्ष है जबकि चीन में 39 और अमेरिका में 38। भारत के पास 6.5 करोड़ से अधिक उच्च कौशल वाले पेशेवर उपलब्ध हैं और डिजिटल-इकोनॉमी वर्कफोर्स 11 करोड़ से बढ़कर पाँच वर्षों में 17 करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है। यही मानव पूँजी भारत को वैश्विक टैलेंट इकॉनमी का वास्तविक इंजन बना रही है ।
यही कारण है कि आज दुनिया में सबसे अधिक चर्चित मुद्दा है—भारतीय प्रतिभा की वैश्विक माँग । गूगल के बाद अब माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न और दर्जनों अन्य कंपनियाँ भारत को केवल आउटसोर्सिंग हब नहीं बल्कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता इनोवेशन सेंटर के रूप में देख रही हैं। यह बदलाव वैश्विक आर्थिक भूगोल में ऐतिहासिक परिवर्तन का संकेत है—जहाँ नवाचार, मैन्युफैक्चरिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता इकॉनमी का केंद्र पश्चिम से हटकर एशिया, और विशेष रूप से भारत की ओर बढ़ रहा है।
महत्वपूर्ण यह है कि यह तकनीकी उभार भारत की वर्षों पुरानी आध्यात्मिक पहचान को पुनर्जीवित करते हुए सनातन–विज्ञान के गहरे संबंध को और सशक्त बनाता है। कुंभ का अनुशासन, काशी की निरंतरता और राम की मर्यादा—ये सभी तत्व भारतीय चेतना में संतुलन, नैतिकता और दीर्घकालिक दृष्टि का निर्माण करते हैं। यही मूल्य आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता और तकनीक के क्षेत्र में भारत को उसके मूल दृष्टिकोण से जोड़ते हैं—जहाँ तकनीक केवल लाभ का साधन नहीं, बल्कि मानव कल्याण का माध्यम है।
भारत की यात्रा इसलिए विशिष्ट है क्योंकि वह सनातन धर्म और एल्गोरिद्म, संस्कार और सर्किट, धर्म और डेटा के बीच कोई दीवार नहीं खड़ी करता, बल्कि इन्हें एक-दूसरे का पूरक मानता है। वर्ष 2025 में भारत न केवल आध्यात्मिक शक्ति है, न ही मात्र तकनीकी महाशक्ति. वह एक ऐसा राष्ट्र बन रहा है जो अपनी सभ्यतागत जड़ों को पुनर्जीवित करते हुए मानव विकास में मानव-केंद्रित तकनीक की भूमिका को रेखांकित कर रहा है। कुंभ से कृत्रिम बुद्धिमत्ता तक की यह यात्रा केवल भारत की नहीं—यह दुनिया के लिए एक संकेत है कि आधुनिकता और मूल्य, विज्ञान और संवेदना, साथ-साथ चल सकते हैं। यही भारत की सबसे बड़ी वैश्विक देन है।
-गजेंद्र सिंह (युवराज)