Tarn Taran fake encounter
फर्जी मुठभेड़ को अंजाम देने वाले तात्कालीन पुलिस अफसर व जवान।

तरनतारन फर्जी मुठभेड़ : 5 पूर्व अधिकारियों को आजीवन जेल

मामले की सुनवाई के दौरान 5 दोषी पुलिस अधिकारियों की हो चुकी है मुत्यु
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चंडीगढ़ : सीबीआई के विशेष न्यायाधीश बलजिंदर सिंह सरा की अदालत ने तरनतारन जिले में 1993 में फर्जी मुठभेड़ में 7 लोगों की मौत मामले में पुलिस के 5 पूर्व अधिकारियों को सोमवार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। साथ ही प्रत्येक दोषी पर 3.50 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। यह जुर्माना राशि मृतकों की विधवाओं और कानूनी उत्तराधिकारियों को समान अनुपात में मुआवजे के रूप में दी जाएगी। जिन्हें सजा सुनाई गई हैं उनमें तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) भूपिंदरजीत सिंह (61), तत्कालीन सहायक उपनिरीक्षक (एएसआई) देविंदर सिंह (58), तत्कालीन एएसआई गुलबर्ग सिंह (72), तत्कालीन निरीक्षक सूबा सिंह (83) और तत्कालीन एएसआई रघबीर सिंह (63) के नाम शामिल हैं। अदालत ने जांच में अभियुक्तों को आपराधिक षड्यंत्र, हत्या और सबूत नष्ट करने का दोषी पाया था। इस मामले में 5 दोषी पुलिस अधिकारी-तत्कालीन निरीक्षक गुरदेव सिंह, तत्कालीन उप निरीक्षक ज्ञान चंद, तत्कालीन एएसआई जगीर सिंह और तत्कालीन हेड कांस्टेबल मोहिंदर सिंह और अरूर सिंह की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई है। 

इस तरह दिया था फर्जी मुठभेज को अंजाम : 32 साल बाद पीड़ित परिवारों को न्याय मिला है। सीबीआई द्वारा की गई जांच के अनुसार, सिरहाली थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी गुरदेव सिंह के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम ने 27 जून 1993 को एक सरकारी ठेकेदार के आवास से एसपीओ शिंदर सिंह, देसा सिंह, सुखदेव सिंह और दो अन्य बलकार सिंह और दलजीत सिंह को पकड़ लिया था। सीबीआई जांच के अनुसार, उन्हें डकैती के एक झूठे मामले में फंसाया गया था। इसके बाद दो जुलाई 1993 को इसी थाने की पुलिस ने शिंदर सिंह, देसा सिंह और सुखदेव सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया, जिसमें दावा किया गया कि वे सरकारी हथियारों के साथ फरार हो गए हैं। तत्कालीन डीएसपी भूपिंदरजीत सिंह और तत्कालीन निरीक्षक गुरदेव सिंह के नेतृत्व में 12 जुलाई 1993 को पुलिस की एक टीम ने दावा किया कि जब वे डकैती के मामले में बरामदगी के लिए मंगल सिंह नाम के व्यक्ति को घारका गांव ले जा रहे थे, उसी दौरान आतंकवादियों ने हमला कर दिया। गोलीबारी में मंगल सिंह, देसा सिंह, शिंदर सिंह और बलकार सिंह मारे गए। सीबीआई जांच के अनुसार, अभिलेखों में उनकी पहचान होने के बावजूद, उनके शवों का अंतिम संस्कार लावारिस के रूप में कर दिया गया। डीएसपी भूपिंदरजीत सिंह के नेतृत्व वाली पुलिस टीम ने 28 जुलाई 1993 को भी एक फर्जी मुठभेड़ में तीन और व्यक्ति सुखदेव सिंह, सरबजीत सिंह और हरविंदर सिंह को मार दिया।

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