सुधा मूर्ति ने सोशल मीडिया पर बच्चों के चित्रण के लिए सख्त नियम बनाने की मांग की
नई दिल्ली: राज्यसभा की मनोनीत सदस्य सुधा मूर्ति ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से आग्रह किया कि सोशल मीडिया मंचों पर बच्चों के चित्रण के लिए स्पष्ट नियम बनाए जाएं, ताकि नयी पीढ़ी को सही मूल्य और बेहतर सामाजिक शिक्षा मिल सके। उच्च सदन में शून्यकाल के दौरान मूर्ति ने सोशल मीडिया पर बच्चों को चित्रित किए जाने के तरीकों को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की और फ्रांस जैसे कई विकसित देशों में बच्चों के चित्रण पर लागू नियमों का उदाहरण दिया।
सोशल मीडिया की नकारात्मकता से बच्चों को बचाना जरुरी
उन्होंने कहा, “बच्चे हमारा भविष्य हैं और हमें उन्हें अच्छे मूल्य, शिक्षा, खेल और अन्य गतिविधियों के माध्यम से विकसित करना चाहिए। सोशल मीडिया अब बहुत लोकप्रिय हो गया है और इसके कई फायदे हैं, लेकिन इसके कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं।” मूर्ति ने बताया कि कई माता-पिता अपने मासूम बच्चों को सोशल मीडिया पर विभिन्न तरीकों से चित्रित करते हैं।
उन्होंने कहा, “बच्चों को विभिन्न प्रकार के परिधान, वेशभूषा और व्यावसायिक रूप से प्रदर्शित किया जाता है, ताकि उन्हें सोशल मीडिया पर अधिक से अधिक संख्या में लोग फॉलो करें। इससे माता-पिता को तो आर्थिक लाभ होता है, लेकिन हमें सोचना चाहिए कि बच्चों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?”
बच्चों को आय का स्त्रोत न बनने दें
मूर्ति ने आगाह किया कि बच्चों का इस तरह से उपयोग माता-पिता की आय का स्रोत बन जाता है, लेकिन इससे बच्चे की मानसिकता और बचपन प्रभावित होता है। उन्होंने कहा, “बच्चा अपनी अनुमति नहीं देता क्योंकि वह नासमझ होता है और इसके प्रति जागरूक नहीं होता। हमें सोचना चाहिए कि इसका बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक असर पड़ेगा। वे सामाजिक गतिविधियों, खेलकूद से वंचित रह जाएंगे और अच्छी शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाएंगे।”
सोशल मीडिया पर बच्चों के चित्रण को नियंत्रित किया जाए
मूर्ति ने केंद्र से आग्रह किया कि सोशल मीडिया पर बच्चों के चित्रण को नियंत्रित किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने विज्ञापन और फिल्म उद्योग में बच्चों के चित्रण पर पहले ही कड़ी नियमावली लागू कर दी है, लेकिन सोशल मीडिया पर ऐसा नहीं किया गया। उन्होंने चेताया कि नियमों और प्रतिबंधों के अभाव में यह भविष्य में बच्चों के लिए बड़ी समस्या पैदा करेगा। मूर्ति ने कहा, “बच्चों को कुछ खास प्रकार के कपड़े पहनने या नृत्य की अनुमति नहीं होनी चाहिए, क्योंकि अगली पीढ़ी का निर्माण का यह सही तरीका कतई नहीं है।’’

