सागरिका ने प्रवासी श्रमिकों के निर्वासन पर सरकार से पूछा- इतनी जल्दी क्या है?

शून्यकाल के दौरान घोष ने कहा कि 21 जून को 26 वर्षीय, गर्भवती श्रमिक सुनेली खातून और उनके परिवार को दिल्ली पुलिस ने पकड़ा और उनके आठ साल के बेटे सहित उन्हें बांग्लादेश भेज दिया गया।
सागरिका ने प्रवासी श्रमिकों के निर्वासन पर सरकार से पूछा- इतनी जल्दी क्या है?
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नई दिल्ली: तृणमूल कांग्रेस की सदस्य सागरिका घोष ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में पश्चिम बंगाल की दो महिला प्रवासी श्रमिकों को बांग्लादेश भेजे जाने का मुद्दा उठाया और बिना उचित सत्यापन के उन्हें जल्दी से जल्दी निर्वासित करने पर जानना चाहा कि इतनी भी जल्दी क्या है।

शून्यकाल के दौरान उठाया मुद्दा

शून्यकाल के दौरान घोष ने कहा कि 21 जून को 26 वर्षीय, गर्भवती श्रमिक सुनेली खातून और उनके परिवार को दिल्ली पुलिस ने पकड़ा और उनके आठ साल के बेटे सहित उन्हें बांग्लादेश भेज दिया गया। इसी तरह 32 वर्षीय स्वीटी और उनके परिवार को भी 27 जून को पकड़ा गया और निर्वासित किया गया। घोष ने कहा कि सुनेली खातून केवल कलकत्ता उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद भारत लौटीं।

आपात स्थिति में ही तुरंत निर्वासन संभव

उनके अनुसार, उच्चतम न्यायालय ने गहन और निष्पक्ष सुनवाई के बिना किए गए निर्वासन पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय का 2025 की एक टिप्पणी इस बात को स्पष्ट करती है कि केवल ‘‘आपात स्थिति’’ में ही तुरंत निर्वासन संभव है। घोष ने सरकार से पूछा, “सुनेली खातून और स्वीटी बीबी को बिना उचित प्रक्रिया के क्यों निर्वासित किया गया? क्या यह केवल राजनीतिक उद्देश्य से बंगला भाषी लोगों को अवैध बताने की कोशिश है?”

बांग्ला भाषी प्रवासी श्रमिकों की समस्या पर भी रखी बात

घोष ने दिल्ली और गुड़गांव में बांग्ला भाषी प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं की ओर भी ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा, ‘‘वसंत कुंज के जय हिंद बंगाली कॉलोनी में बांग्ला भाषी प्रवासियों को रोज धमकाया जाता है। स्थानीय पुलिस उन्हें बांग्लादेशी बताती है, जबकि वे इस देश के वास्तविक नागरिक हैं और उनके पास सभी पहचान पत्र हैं।’’

उन्होंने गोवा नाइटक्लब आग की घटना का भी उल्लेख किया, जिसमें 25 लोग मारे गए। उन्होंने और कहा कि अधिकतर मृतक प्रवासी श्रमिक थे। घोष ने 2020 के कोविड लॉकडाउन का भी उदाहरण दिया और कहा कि सिर्फ चार घंटे की सूचना के बाद लॉकडाउन लगने से प्रवासी श्रमिक सबसे अधिक प्रभावित हुए थे।

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