किसी के गले नहीं उतर रहा धनखड़ का यूं इस्तीफा देना

यदि सेहत ही कारण होता तो वे ये कदम सत्र शुरू होने से पहले ही उठा लेते
Dhankar
जगदीप धनखड़ा
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सर्जना शर्मा

नई दिल्ली : मॉनसून सत्र के पहले दिन खराब सेहत के आधार पर और डॉक्टर की सलाह को कारण बता कर उपराष्ट्रपति का इस्तीफा किसी के गले नहीं उतर रहा है। यदि सेहत ही कारण होता तो वे ये कदम सत्र शुरू होने से पहले ही उठा लेते। यदि सरकार को भी उनसे इस्तीफा लेना होता तो शायद पहले ही ले लेती, सत्र शुरू होते ही तो उनसे इस्तीफा कतई न लेती। सूत्रों के अनुसार सरकार और उनके बीच संबंध बहुत अच्छे और मधुर नहीं चल रहे थे। कुछ मुद्दों पर उनका रुख काफी सख्त रहा। हाल ही की बात करें तो न्यायपालिका को लेकर उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि न्यायपालिका संसद से ऊपर ‘सुप्रीम संसद’ नहीं हो सकती। दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा को लेकर तो उन्होंने अनेक बार सदन में कहा कि उनके खिलाफ पुलिस रिपोर्ट क्यों नहीं लिख रही है? उनको लगता था कि सरकार ने उनके साथ संवाद बंद कर दिया है, उनकी कोई सुनता नहीं है। लगभग 15-20 दिन पहले अपने एक अति विश्वस्त व्यक्ति से अपने दिल की बात की थी और कहा था कि वे सरकार से इस बारे में बात करें। अपनी कार के काफिले को लेकर भी वे सरकार से नाराज थे। उन्होंने अपनी पसंद की कार सरकार को बतायी थी, लेकिन उनकी कारें नहीं बदली गयी।

खरगे के साथ होती थी तीखी बहस : राज्यसभा में सदन चलाते समय वे बार-बार कहते थे कि सदन की गरिमा बनाकर रखी जानी चाहिए। विपक्ष, विशेषकर नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ उनकी बहुत तीखी बहसें होती थीं। खरगे उन पर आरोप लगाते थे कि विपक्ष के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। खरगे इतने नाराज रहते थे कि धनखड़ जब उनको अपने चैंबर में बुलाते थे, वे नहीं जाते थे। विपक्षी सांसद उनसे नाराज रहते थे कि उनको बोलने का मौका नहीं दिया जाता। धनखड़ 12 महीने 30 दिन और 24 घंटे काम करने वाले उपराष्ट्रपति रहे हैं। उनके सचिवालय के लोग अक्सर कहते सुने जाते थे कि शनिवार को भी वे अपने चैंबर में बैठ जाते हैं। सदन नहीं चलता, तब भी निरंतर संसद भवन कार्यालय में आते हैं।

सच है कि तबीयत खराब थी, एम्स में हुए थे भर्ती : ये भी सच है कि उनकी सेहत पिछले दिनों उनकी सेहत खराब रही और उनको एम्स में भर्ती करवाना पड़ा था। 9 मार्च 2025 को उनके सीने में दर्द उठा था, उनको अस्पताल में दाखिल करवाया गया। उसके बाद बजट सत्र में उन्होंने ठीक से सदन चलाया। उसके बाद पिछले महीने भी उनकी तबीयत बिगड़ गयी थी 25 जून के उत्तराखंड में एक कार्यक्रम के दौरान उनके सीने में तेज दर्द हुआ था। यदि उनको सेहत कारणों से ही इस्तीफा देना होता तो वे कब के दे चुके होते।

कार्यकाल पूरा होने से 2 साल पहले दिया इस्तीफा : पीआईबी से उनके 23 जुलाई के कार्यक्रम की सूचना भी आ गयी थी। फिर ऐसा क्या हुआ? शायद किसी बात को लेकर सरकार से तीखी झड़प या किसी बात पर गहरा मतभेद। अचानक इस्तीफा, लेकिन शालीन और संयत भाषा में और फिर उसको अपने एक्स हैंडल पर भी पोस्ट कर दिया था शायद मन कहीं गहरे आहत हुआ है। वरना अपना कार्यकाल पूरा करने की बात कहने वाले दो साल पहले ऐसे पद न त्याग देते।

सरकार को भी असमंजस में डाल देते थे उनके बयान

अब सवाल यही है कि जो व्यक्ति दिल की बीमारी के बाद भी अस्पताल से लौटकर सदन का कार्यवाही संभाल लेता था, वो सेहत के आधार पर इस्तीफा कैसे दे सकता है? उनको पक्के इरादे वाला, साफगोई से अपनी बात कहने वाला उपराष्ट्रपति माना जाता है। कई बार तो उनके बयान सरकार को भी असमंजस में डाल देते थे। यहां तक कि एक बार मुंबई में एक कृषि समारोह में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को उन्होंने खरी-खरी सुना दी थी और भरी सभा में पूछ लिया था किसानों से किए गए वादे आपने अब तक पूरे क्यों नहीं किए? उस दिन धनखड़ ने विपक्ष का ये भ्रम दूर कर दिया था कि वे केवल उनको ही डांटते हैं।

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