शरद पूर्णिमा की रात घर-घर हुई पारंपरिक कुजागरी लक्ष्मी पूजा

शरद पूर्णिमा की रात घर-घर हुई पारंपरिक कुजागरी लक्ष्मी पूजा
Published on

केडी पार्थ, सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता : शरद पूर्णिमा की रात सोमवार को पूरे बंगाल में पारंपरिक कुजागरी लक्ष्मी पूजा का उल्लास छाया रहा। राज्य के करीब 78 फीसदी घरों में मां लक्ष्मी की पूजा की गई। पूजा पंडालों से लेकर घरों तक दूध, चिउड़ा, खीर और नारियल लड्डू का भोग लगाया गया। टॉलीवुड के कई अभिनेता और कुछ राजनेताओं ने भी इसमें भाग लिया। श्रद्धालुओं ने रातभर जागरण कर देवी की आराधना की।

धार्मिक मान्यता: “कौन जाग रहा है?”

इसी से जुड़ा है ‘कुजागरी’ नाम धार्मिक विद्वानों के अनुसार, ‘कु-जागरी’ का अर्थ है — “कौन जाग रहा है?” शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात देवी लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती हैं और जो उनके स्वागत में जागते रहते हैं, उनके घरों में सुख-समृद्धि का वास होता है। मान्यता यह भी है कि दुर्गा पूजा के बाद लक्ष्मी की पूजा इसलिए की जाती है ताकि शक्ति के बाद शांति और समृद्धि स्थापित हो।

दो परंपराएं, एक आराध्या

घरों में कुजागरी, दुकानों में दीपावली की लक्ष्मी भारत में धन की देवी लक्ष्मी की पूजा अनेक रूपों में होती है, लेकिन बंगाल में यह परंपरा एक अनोखे द्वंद्व के रूप में देखी जाती है। यहाँ घरों में शरद पूर्णिमा की रात ‘कुजागरी लक्ष्मी पूजा’ का शीतल उल्लास दिखता है, जबकि व्यापारी वर्ग दीपावली की अमावस्या पर लक्ष्मी-गणेश पूजा को सर्वोच्च मानता है।

श्रद्धालुओं की आस्था

उत्तरपाड़ा निवासी जमुना दासगुप्ता बताती हैं, हमारे घर में दशकों से कुजागरी पूजा होती है। हम दूध, चिउड़ा और खीर का भोग लगाते हैं। इस दिन महिलाएं लक्ष्मी के पदचिह्न बनाकर शुभता का आह्वान करती हैं। दीपावली पर पूजा नहीं होती।” वहीं बड़ाबाजार के व्यापारी शैलेश बैगानी कहते हैं, “हम व्यापारियों के लिए दीपावली साल का सबसे शुभ दिन होता है। इस दिन नई खाता-बही की पूजा होती है।

लक्ष्मी का आह्वान

सामुदायिक रूप से भी हुआ लक्ष्मी का आह्वान कोलकाता के बागबाजार सार्वजनिक पूजा पंडाल समेत कई पंडालों में शांतिपूर्ण माहौल में यह पूजा हुई। दुर्गा पूजा की भीड़-भाड़ के बाद इन पंडालों में सामुदायिक स्तर पर लक्ष्मी का आह्वान किया गया। हावड़ा, हुगली, उत्तर चौबीस परगना समेत विभिन्न जिलों में चार हजार से अधिक सामुदायिक पंडालों और करीब 78% घरों में यह पूजा संपन्न हुई।

लक्ष्मी का स्वागत ही उद्देश्य, चाहे तिथि कोई भी हो

धार्मिक विद्वानो के अनुसार, कुजागरी पूजा बंगाल की आत्मा में रची-बसी है, जैसे दीपावली उत्तर भारत की संस्कृति में। उद्देश्य एक ही है — लक्ष्मी का स्वागत। दो तिथियां, एक आराध्या — यही है भारत की सांस्कृतिक विविधता का जीवंत रूप।

संबंधित समाचार

No stories found.

कोलकाता सिटी

No stories found.

खेल

No stories found.
logo
Sanmarg Hindi daily
sanmarg.in