डीएनए मेटाबार कोडिंग से मकड़ी-परजीवी संबंधों का हुआ खुलासा

जेडएसआई ने हासिल की वैश्विक उपलब्धि
डीएनए मेटाबार कोडिंग से मकड़ी-परजीवी संबंधों का हुआ खुलासा
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कोलकाता : भारतीय जैव विविधता अनुसंधान को वैश्विक मंच पर नई ऊंचाई पर ले जाते हुए जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जेडएसआई) के वैज्ञानिकों ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। दुनिया में पहली बार, जेडएसआई के शोधकर्ताओं ने मकड़ियों के अंडों से सीधे परजीवी की पहचान करने के लिए डीएनए मेटाबार कोडिंग तकनीक का सफल उपयोग किया है। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. के. राजमोहन के नेतृत्व में रtपम देबनाथ, वी. सुषमा और के. पी. दिनेश द्वारा किया गया यह एक शोध प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस शोध में हाई-थ्रूपुट सीक्वेंसिंग तकनीक का उपयोग कर अत्यंत सूक्ष्म परजीवियों, जैसे इदरिस, ओडोन्टाकोलस, बयूस और अफानोगमस की पहचान की गई है, जो मकड़ी के जीवन चक्र में गहराई से समाहित होते हैं। जेडएसआई निदेशक डॉ. धृति बनर्जी ने टीम को बधाई देते हुए कहा, 'सतत विकास की शुरुआत जीवन के जटिल ताने-बाने को समझने से होती है। यह शोध भारतीय विज्ञान के लिए गर्व का क्षण है और जैव विविधता में नवाचार में हमारी अग्रणी भूमिका को दर्शाता है।' गौरतलब है कि अब तक परजीवियों का अध्ययन करना कठिन होता था क्योंकि इसके लिए दीर्घकालीन पालन-पोषण और सूक्ष्म परीक्षण की आवश्यकता होती थी। लेकिन जेडएसआई टीम की इस तकनीक ने इस कार्य को क्रांतिकारी रूप से सरल बना दिया।

शोध में दो मिलियन से अधिक डीएनए रीड्स का विश्लेषण करके 28 आर्थ्रोपॉड प्रजातियों की पहचान की गई, जिनमें से 14 में सीधा परजीवी-मेजबान संबंध पाया गया। डॉ. राजमोहन ने कहा, 'डीएनए मेटाबार कोडिंग पारंपरिक टैक्सोनॉमी का विकल्प नहीं, बल्कि उसका विस्तार है। इससे हम पारिस्थितिकीय संबंधों की गहराई तक पहुंच सकते हैं।' शोधकर्ता रtपम देबनाथ ने कहा, 'यह जैसे एक अदृश्य संसार से पर्दा उठाने जैसा है। हमें न केवल अनुमानित संबंध मिले, बल्कि कई नये और अप्रत्याशित जैविक कड़ियाँ भी पता चलीं।' वी. सुषमा ने जोड़ा, 'यह अध्ययन प्रकृति की जटिलता को एक नए दृष्टिकोण से दिखाता है। अफानोगमस जैसे जीवों की खोज से यह संकेत मिलता है कि कई खाद्य श्रृंखलाएं एक साथ और परस्पर क्रिया करती हैं।' के. पी. दिनेश ने भविष्य की दिशा बताते हुए कहा कि, 'हमें परजीवी ततैया और मकड़ियों की डीएनए बारकोड लाइब्रेरी विकसित करने की आवश्यकता है, ताकि पारिस्थितिक निगरानी और संरक्षण कार्य और सशक्त हो सकें।' यह शोध न केवल भारतीय विज्ञान के लिए एक उपलब्धि है, बल्कि वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय के लिए भी एक महत्वपूर्ण योगदान है। यह जैव विविधता संरक्षण और पारिस्थितिक अनुसंधान के लिए आणविक तकनीकों के नए रास्ते खोलता है, जिससे प्रकृति के अदृश्य संबंध अब पहले से कहीं अधिक स्पष्ट हो सकेंगे।

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