धर्मांतरण कानून पर घिरी उत्तर प्रदेश सरकार, सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर मांगा जवाब

याचिकाकर्ताओं ने कुछ प्रावधानों को ‘अस्पष्ट और अत्यधिक व्यापक’ बताया
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सुप्रीम कोर्ट
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नयी दिल्ली/ लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार से गैरकानूनी तरीके से धर्म परिवर्तन पर 2024 में संशोधित कानून के कुछ प्रावधानों के खिलाफ एक याचिका पर जवाब मांगा। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। उसने इस याचिका को अन्य समान याचिकाओं के साथ सुनवाई के लिए संलग्न कर दिया। शीर्ष अदालत लखनऊ निवासी शिक्षाविद रूप रेखा वर्मा और अन्य की संशोधित कानून के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

याचिकाकर्ताओं ने 2024 में संशोधित उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम के कुछ प्रावधानों को ‘अस्पष्ट और अत्यधिक व्यापक’ बताया है और तर्क दिया है कि उनकी अस्पष्टता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक प्रचार-प्रसार का उल्लंघन करती है।

राज्य सरकार के वकील ने बुधवार को कहा कि कानून को चुनौती देने वाली ऐसी ही याचिकाएं भारत के प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष लंबित हैं। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि याचिका में केवल 2024 में कानून में किए गए संशोधनों को चुनौती दी गई है। शीर्ष अदालत ने 2 मई को याचिका पर विचार करने पर सहमति जताई।

अधिवक्ता पूर्णिमा कृष्णा के माध्यम से दायर याचिका में दलील दी गई है कि कानून संविधान के अनुच्छेदों 14 (कानून के समक्ष समानता), 19 (बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी), 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) तथा 25 (धर्म की आजादी) पर अतिक्रमण करता है।

इसमें दावा किया गया है कि कानून की धारा 2 और 3 ‘अस्पष्ट, अत्यधिक व्यापक और स्पष्ट मानदंडों के अभाव’ वाली हैं जिससे यह तय करना मुश्किल हो गया है कि अपराध कैसे हुआ। अस्पष्टता मनमानी और भेदभावपूर्ण प्रक्रिया अपनाने का रास्ता खोल देगी।

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