सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को लगाई फटकार, कहा- आप मुकदमेबाजी को हाईजैक नहीं कर सकते

यूपी के वृंदावन में प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर से संबंधित विवाद
सुप्रीम कोर्ट
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नयी दिल्ली/ लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के वृंदावन में प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को लेकर दो निजी पक्षों के बीच मुकदमेबाजी को 'हाईजैक' करने के लिए मंगलवार को राज्य सरकार को फटकार लगाई। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि अगर राज्य सरकार पक्षों के बीच निजी विवाद में शामिल होने लगेगी तो इससे कानून का शासन समाप्त हो जाएगा।

पीठ ने कहा, क्या राज्य सरकार कार्यवाही में पक्षकार थी ? राज्य सरकार किस हैसियत से विवाद में शामिल हुई है ? अगर सरकार पक्षों के बीच निजी विवाद में शामिल होने लगेगी तो इससे कानून का शासन समाप्त हो जाएगा। आप मुकदमेबाजी को हाईजैक नहीं कर सकते। दो पक्षों के बीच निजी मुकदमेबाजी में राज्य सरकार द्वारा हस्तक्षेप याचिका दाखिल करना और उसे हाईजैक करना स्वीकार्य नहीं है।

शीर्ष अदालत मथुरा में श्री बांके बिहारी मंदिर के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की प्रस्तावित पुनर्विकास योजना को मंजूरी देने वाले अपने आदेश में संशोधन संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रही थी। शुरुआत में याचिकाकर्ता देवेंद्र नाथ गोस्वामी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी, हमें पक्षकार बनाए बिना उत्तर प्रदेश सरकार को 300 करोड़ रुपये की धनराशि दे दी गई है।

सिब्बल ने दलील दी, आप एक अन्य याचिका में आदेश देकर कैसे निर्देश दे सकते हैं कि एक निजी मंदिर की कमाई राज्य को सौंप दी जाए। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वकील ने शीर्ष अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन और प्रस्तावित गलियारे के काम की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट बनाया है। उन्होंने कहा कि अधिनियम के तहत पूरी धनराशि ट्रस्ट के पास होगी, न कि सरकार के पास।

शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार के वकील को निर्देश दिया कि वह ट्रस्ट के संबंध में पारित अध्यादेश की एक प्रति याचिकाकर्ता को दें और संबंधित प्रधान सचिव को 29 जुलाई तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने 15 मई को श्रद्धालुओं के लिए मंदिर कॉरिडोर विकसित करने की राज्य सरकार की योजना का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।

इसके बाद न्यायालय ने राज्य सरकार की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि मंदिर के कोष का उपयोग केवल मंदिर के आसपास पांच एकड़ भूमि खरीदने के लिए किया जाए। राज्य सरकार द्वारा मंदिर के विकास के लिए रिकॉर्ड पर रखी गई प्रस्तावित योजना के तहत न्यायालय ने कहा कि मंदिर के आसपास पांच एकड़ भूमि अधिग्रहित की जानी थी और उस पर पार्किंग स्थल, भक्तों के लिए आवास, शौचालय, सुरक्षा जांच चौकियां और अन्य सुविधाएं बनाकर उसका विकास किया जाना था।

गोस्वामी ने 19 मई को एक याचिका दायर करके कहा कि प्रस्तावित पुनर्विकास परियोजना का क्रियान्वयन व्यावहारिक रूप से अव्यावहारिक है। याचिका में दावा किया गया है कि इस तरह के पुनर्विकास से मंदिर और उसके आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र के आवश्यक धार्मिक और सांस्कृतिक चरित्र के बदलने का जोखिम है, जिसका गहरा ऐतिहासिक और भक्ति महत्व है।

याचिका में कहा गया है कि गोस्वामी, मंदिर के संस्थापक स्वामी हरिदास गोस्वामी के वंशज हैं और उनका परिवार पिछले 500 वर्षों से मंदिर के मामलों का प्रबंधन कर रहा था। याचिकाकर्ता ने कहा कि वह मंदिर के दैनिक धार्मिक और प्रशासनिक मामलों के प्रबंधन में सक्रिय रूप से शामिल थे।

न्यायालय ने अपने 15 मई के फैसले के जरिये उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दायर जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के 8 नवंबर, 2023 के उस आदेश को संशोधित किया था, जिसने राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना को स्वीकार कर लिया था, लेकिन उसे मंदिर के धन का उपयोग करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।

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