

लखनऊ : लखनऊ की एक विशेष अदालत ने एक वकील को दलित महिला की पहचान का दुरुपयोग करके अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ कई फर्जी मामले दर्ज कराने का दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई तथा 5.10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।
विशेष न्यायाधीश (अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम) विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने फैसला सुनाते हुए परमानंद गुप्ता को अपने प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बनाने के लिए एक दलित महिला पूजा रावत के माध्यम से झूठे मुकदमे दर्ज कराने की साजिश रचने और कानून के दुरुपयोग का दोषी करार दिया।
विशेष लोक अभियोजक अरविंद मिश्रा ने बताया कि गुप्ता ने रावत के साथ मिलीभगत करके अपने नाम से कम से कम 18 और रावत के माध्यम से 11 मामले दर्ज कराए थे। उन्होंने बताया कि इनमें से कई मामले उनके प्रतिद्वंद्वी अरविंद यादव और उनके परिवार के खिलाफ संपत्ति विवाद के सिलसिले में दर्ज कराए गए थे। इन फर्जी मुकदमों में दुष्कर्म और छेड़छाड़ के आरोप भी शामिल हैं।
यह मामला उस वक्त सामने आया जब इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान इस मुद्दे को उठाया गया जिसके बाद संबंधित थानों से रिपोर्ट मांगी गई। पांच मार्च 2025 को हाई कोर्ट ने इस मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए थे।
जांच में पता चला कि गुप्ता ने यादव और उनके परिवार को फंसाने के लिए रावत की दलित पहचान का इस्तेमाल करने की साजिश रची। हालांकि, जांच में यह सामने आया कि कथित घटनाओं के समय रावत विवादित स्थल पर मौजूद ही नहीं थीं, और जिस घर को उन्होंने किराये पर लिए होने का दावा किया था, वह वास्तव में यादव के परिवार का था।
बाद में चार अगस्त 2025 को रावत ने खुद अदालत में एक अर्जी दी, जिसमें उसने कहा कि उसे गुप्ता और उसकी पत्नी संगीता ने फंसाया। संगीता एक ब्यूटी पार्लर संचालक है, जहां रावत सहायिका के रूप में काम करती थी।
रावत ने स्वीकार किया कि उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष यौन उत्पीड़न के झूठे बयान देने के लिए मजबूर किया गया था और उसने माफी की गुहार लगाई। अदालत ने उसे सशर्त माफी दे दी।
हालांकि, न्यायाधीश ने कहा कि गुप्ता इस बात से पुरी तरह वाकिफ था कि अपराध के लिए आजीवन कारावास हो सकती है, फिर भी उसने साजिश रची और इसलिए उसे कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
गुप्ता को आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए, अदालत ने यह भी आदेश दिया कि फैसले की एक प्रति उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को भेजी जाए, ताकि ‘परमनाथ गुप्ता जैसे अपराधी वकील अदालत परिसर में प्रवेश न कर सकें और वकालत न कर सकें, जिससे न्यायपालिका की गरिमा बनी रहे।