ब्रज में बसंत पंचमी से शुरू हुई होली की धूम

मंदिरों में भक्तों पर बरसने लगा गुलाल
होली
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मथुरा : उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र में सोमवार को बसंत पंचमी से होली की धूम शुरू हो गई। विश्वविख्यात मंदिरों और प्रमुख चौराहों पर होली का डांढ़ा (होलिका दहन के लिए चिन्हित स्थान का संकेतक) गाड़े जाने के साथ ही मंदिरों में ठाकुरजी के प्रसाद के रूप में अबीर-गुलाल उड़ाया गया। ठाकुर राधावल्लभ लाल मंदिर सहित कई मंदिरों में समाज गायन (होली के गीत) भी शुरू हो गया, जो रोज सुबह-शाम राजभोग व शयन भोग आरती से पहले गाया जाएगा।

वृंदावन में सोमवार को राजभोग और श्रृंगार आरती के बाद सेवायत गोस्वामियों ने मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं पर प्रसाद के रूप में जमकर गुलाल बरसाया। आराध्य के दर्शन के साथ श्रद्धालु होली का आनंद लेकर भक्ति के रंग में सराबोर हो गए। इसी तरह, अन्य मंदिरों में भी बसंत पंचमी से फागुन की दशमी तक 50 दिन चलने वाली ब्रज की प्रसिद्ध होली की शुरुआत हो गई। अपने आराध्य के संग होली का आनंद ले रहे श्रद्धालु जयकारे लगाने लगे, जिससे मंदिर प्रांगण गुंजायमान हो उठा।

दुनिया के बाकी हिस्सों में जहां होली का पर्व दो-तीन दिन तक मनाया जाता है, वहीं राधा-कृष्ण के निश्छल प्रेम की इस धरती पर यह पर्व वसंत पंचमी से शुरू होकर फागुन मास की पूर्णिमा (होलिका दहन के दिन) के बाद अगले 10 दिन तक जारी रहता है।

वृंदावन के बांकेबिहारी मंदिर के प्रबंधक मुनीश शर्मा ने कहा, ब्रज में होलिकोत्सव अलग तरीके से मनाया जाता है। शुरुआत वसंत पंचमी पर ठाकुरजी के ‘हुरियार’ (होली खेलने के लिए मतवाले ग्वाल) के रूप में दर्शन दिए जाने से होती है, जिसमें दर्शन के लिए आने वाले भक्तों पर प्रसाद के रूप में गुलाल की वर्षा की जाती है। यह परंपरा होलिका दहन तक चलती है, उसके बाद ‘हुरंगा’ (होली की खुशी में गाए जाने वाले गीत और नृत्य) की परंपरा में बदल जाती है, जो 10 दिन बाद तक जारी रहती है।

बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन समिति के पदाधिकारी उमेश सारस्वत ने कहा कि बरसाना और नंदगांव की ‘लठमार होली’ (जिसमें हुरियारिन कृष्ण के सखा का रूप धरकर उनसे होली खेलने पहुंचे हुरियारों की लाठियों से पिटाई करती हैं) के लिए ‘ब्रज का होलिकोत्सव’ दुनिया भर में मशहूर है।

उन्होंने बताया कि बांके बिहारी मंदिर में गुलाल की होली 3 फरवरी को वसंत पंचमी से लेकर 10 मार्च को रंगभरनी एकादशी तक जारी रहेगी। रंगभरनी एकादशी से पूर्णिमा तक ठाकुरजी रंग, गुलाल, केसर, इत्र, अर्गजा और गुलाल जल से होली खेलेंगे।

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