स्वयंसेवकों की प्रतिबद्धता से चलता है संघ : भागवत

भागवत ने राजस्थान के 24 दिवंगत संघ प्रचारकों की जीवन गाथाओं का संग्रह ‘...और यह जीवन समर्पित’ ग्रंथ के विमोचन समारोह को किया संबोधित
Bhagwat turns 75
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत
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जयपुर : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने रविवार को कहा कि संघ पूरी तरह स्वयंसेवकों के भावबल और जीवनबल पर चलता है। संघ की असली शक्ति उसके स्वयंसेवकों की प्रतिबद्धता और जीवन ऊर्जा है। दृढ़ मानसिकता से हर स्वयंसेवक खुद ही प्रचारक बन जाता है, यही संघ की जीवन शक्ति है। वह यहां पाथेय कण संस्थान में आयोजित ‘...और यह जीवन समर्पित’ ग्रंथ के विमोचन समारोह को संबोधित कर रहे थे। यह पुस्तक राजस्थान के 24 दिवंगत संघ प्रचारकों की जीवन गाथाओं का संग्रह है। भागवत ने कहा कि आज संघ बढ़ गया है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने संघ की फंडिंग पर फिर से प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि संघ की फंडिंग गुरु दक्षिणा है, लेकिन कुछ लोग इस पर यकीन ही नहीं करते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा है। संघ को ये समर्पण भाव से दिया जाता है।

संघ के कामकाज का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि संघ को केवल दूर से देखकर नहीं समझा जा सकता इसके लिए प्रत्यक्ष अनुभव जरूरी है, जो संघ की गतिविधियों में भाग लेने से ही मिलता है। उन्होंने कहा कि कई लोगों ने संघ की तरह शाखाएं शुरू करने की कोशिश की, लेकिन कोई भी शाखा पंद्रह दिन से ज्यादा नहीं चल पाई, जबकि संघ की शाखाएं सौ वर्षों से चल रही हैं और बढ़ रही हैं, क्योंकि उनका आधार स्वयंसेवकों का त्याग और भावबल है।

भागवत ने कहा कि आज संघ का कार्य समाज में चर्चा और स्नेह का विषय बना हुआ है। संघ के स्वयंसेवकों और प्रचारकों ने क्या क्या किया है, इसके डंके बज रहे हैं। उन्होंने कहा कि 100 वर्ष पहले कौन सोच सकता था कि इसी तरह शाखा चलाकर राष्ट्र के लिए बड़ा काम हो सकता है? लोग तो कहते थे कि हवा में डंडे घुमा रहे हैं, यह क्या राष्ट्र की सुरक्षा करेंगे? लेकिन आज संघ शताब्दी वर्ष मना रहा है और समाज में उसकी स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है।

प्रचारकों और वरिष्ठ स्वयंसेवकों के जीवन पर आधारित नए ग्रंथ ‘...और यह जीवन समर्पित’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह पुस्तक न केवल गौरव की भावना जगाती है, बल्कि कठिन रास्तों पर चलने की प्रेरणा भी देती है। उन्होंने स्वयंसेवकों से अपील की कि वे केवल इस परंपरा को पढ़ें ही नहीं, बल्कि अपने जीवन में भी उतारें। उन्होंने कहा कि यदि उनके तेज का एक कण भी हमने अपने जीवन में धारण कर लिया, तो हम भी समाज और राष्ट्र को आलोकित कर सकते हैं।

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