

नई दिल्ली - भारत की केंद्रीय बैंक, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने मौद्रिक नीति समिति की हालिया बैठक में कई अहम निर्णय लिए हैं, जिनमें से एक रेपो रेट से जुड़ा है। आरबीआई ने तय किया है कि वह रेपो रेट में 0.25% की कटौती करेगी।
हर साल दो महीने के अंतराल पर रेपो रेट की समीक्षा की जाती है। इससे पहले फरवरी 2025 में समिति की बैठक हुई थी, जिसमें भी रेपो रेट में कमी की गई थी। यह बैठक नए गवर्नर संजय मल्होत्रा के नेतृत्व में दूसरी बार आयोजित हुई। लगातार दूसरी बार आरबीआई ने रेपो रेट घटाने का निर्णय लिया है, जो इस बात का संकेत है कि केंद्रीय बैंक आर्थिक स्थिति को प्रोत्साहन देने की दिशा में कदम उठा रहा है।
क्या होता है रेपो रेट?
रेपो रेट वह दर होती है जिस पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण प्रदान करती है। यह दर बैंकों के लिए एक प्रकार की ब्याज दर के रूप में काम करती है, जो तय अवधि के लिए लोन पर लागू होती है। अगर कोई बैंक लंबी अवधि के लिए ऋण लेना चाहता है, तो इसके लिए आरबीआई उन्हें बैंक रेट के आधार पर लोन देती है, जो रेपो रेट से अलग होता है।
रेपो रेट बढ़ने या कम होने से क्या होता है ?
रेपो रेट में बढ़ोतरी का असर यह होता है कि वाणिज्यिक बैंकों को आरबीआई से मिलने वाला कर्ज महंगा हो जाता है। इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव आम लोगों पर पड़ता है, क्योंकि इससे लोन की ब्याज दर और ईएमआई में बढ़ोतरी हो सकती है। वहीं, जब आरबीआई रेपो रेट में कटौती करता है, तो बैंकों को सस्ती दर पर कर्ज मिलता है, जिससे वे ग्राहकों को भी कम ब्याज दर पर लोन देने में सक्षम हो जाते हैं। इसके अलावा, रेपो रेट में बदलाव का असर फिक्स्ड डिपॉजिट की फ्लोटिंग और फिक्स्ड ब्याज दरों पर भी परोक्ष रूप से पड़ सकता है।
RBI ने क्यो घटाया रेपो दर ?
हमारे देश की केंद्रीय बैंक रेपो रेट में कटौती और बढ़ोतरी कर अर्थव्यवस्था में मनी सप्लाई पर नियंत्रित करने की कोशिश करती है। रेपो रेट में कटौती और बढ़ोतरी का फैसला कई तरह के महत्वपूर्ण तथ्यों को देखकर लिया जाता है। इनमें से एक महंगाई भी है।