

सन्मार्ग संवाददाता
मिरिक : दार्जिलिंग जिले के सुकेपोखरी खण्ड के अन्तर्गत पोख्रेबोंग ग्राम पंचायत तीन के मगरजोंग ऑरेंज भिल्ला की महिलाएं आत्मनिर्भरती की एक दास्तान बन गई है। उनके जीवन में आए बदलाव की यह एक प्रेरक और दिलचस्प कहानी है। एक जमाने में अपने संतरों के लिए प्रसिद्ध यह गांव हाल के वर्षों में चाय बागानों के बंद होने और संतरे के उत्पादन में गिरावट के कारण आर्थिक कठिनाई का सामना कर रहा है। इसका मुकाबला करने के लिए स्थानीय माताओं और बहनों ने टीम बनाकर आत्मनिर्भरता और आर्थिक पुनरुद्धार के लिए अभियान शुरू किया है। ऑरेंज विल्ला की पहचान वापस लाने के इरादे से विशेष ग्राफ्टेड संतरे की खेती को प्राथमिकता दी जा रही है। टीम एक योजनावद्ध तरीके से काम कर रही है। पुराने पौधों को हटाकर उन्नत ग्राफ्टेड संतरे के पौधे लगाए जाने की दिशा में काम चल रहा है। विद्या राई के अनुसार इच्छुक किसानों को आवश्यक प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके साथ ही खेती का व्यवसायीकरण किया जा रहा है। इसके साथ ही बहुआयामी उत्पादन की दिशा में भी कदम बढ़ाया गया है। गांव में मशरूम, जैम, ग्रीन टी और अत्यंत मूल्यवान मशरूम किस्म 'च्यान सिटागे" की व्यावसायिक खेती शुरू की गई है। इस मामले में पहल तो महिलाओं की ही है पर पुरुष भी सक्रियता के साथ उनका सहयोग कर रहे हैं। टीम ने संकट के समय मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करने वाले संगठनों के प्रति आभार जतायी है। दार्जिलिंग वेलफेयर सोसाइटी, जीटी इंडिया और बिल गेट्स फाउंडेशन से मिल रही तकनीकी और वित्तीय सहायता गांव की इस आत्मनिर्भरता की यात्रा को और मजबूत बना रही है। ऑरेंज विल्ला एक बार फिर अपनी पहचान बनाने की मुहिम पर चल पड़ा है।