

चंडीगढ़ : शीर्ष गुरुद्वारा संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने कहा है कि वह पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले के दोषी बलवंत सिंह राजोआना के मामले में दायर दया याचिका वापस नहीं लेगी। राजोआना को इस मामले में मौत की सजा सुनाई गयी है। एसजीपीसी ने कानून विशेषज्ञों के साथ बैठक के बाद इस संबंध में फैसला किया। राजोआना ने पहले एसजीपीसी से अपनी याचिका वापस लेने की अपील की थी। एसजीपीसी के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने कहा कि सभी कानूनी विशेषज्ञों का मत है कि दया याचिका को वापस नहीं लिया जाना चाहिए और इस कानूनी लड़ाई को आगे जारी रखा जाना चाहिए।
धामी ने कहा, ‘सभी वकीलों ने राय दी कि याचिका को वापस नहीं लिया जाना चाहिए। हमें यह देखना चाहिए कि सरकार का रुख इस पर क्या होता है?’ उन्होंने कहा कि केंद्र में लगातार बनी सरकारों द्वारा याचिका पर कोई निर्णय न लेना सही नहीं है। उन्होंने कहा कि यह बहुत गंभीर मामला है और इस पर राय बनाना जरूरी है। धामी ने कहा कि एसजीपीसी इस मामले में लंबे समय से कानूनी लड़ाई लड़ रही है, लेकिन सरकारों की ‘निष्क्रियता मानवाधिकारों के उल्लंघन’ को दर्शाती है। इस बैठक में वरिष्ठ अधिवक्ताओं पूरन सिंह हुंदल, जी एस बल, अमर सिंह चहल, राजविंदर सिंह बैंस, सिख विद्वान डॉ. केहर सिंह और पूर्व आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) अधिकारी काहन सिंह पन्नू समेत कई अन्य लोग शामिल हुए।
चंडीगढ़ स्थित सिविल सचिवालय के प्रवेश द्वार पर 31 अगस्त 1995 को किए गए विस्फोट में तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह समेत 17 लोग मारे गए थे। विशेष अदालत ने राजोआना को जुलाई 2007 में फांसी की सजा सुनाई थी। मार्च 2012 में एसजीपीसी ने संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राजोआना की ओर से दया याचिका दायर की थी। इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस याचिका पर फैसला लेने को कहा था।