जब मुस्लिम कवियों ने लिखी काली भक्ति की गाथा...

माँ काली के गीतों में एकता का संदेश
Dakshinakali
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कोलकाता: बंगाल सदियों से विविधता और सामंजस्य की भूमि रहा है — एक ऐसा राज्य जहाँ हर धर्म, हर संस्कृति और हर परंपरा एक-दूसरे में घुल-मिल जाती है। यहाँ पूजा-पाठ केवल किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं, बल्कि यह पूरे समाज का साझा उत्सव बन जाता है। दुर्गा पूजा हो या काली पूजा, दीपावली हो या ईद — हर पर्व में एक-दूसरे की भागीदारी दिखाई देती है। यह सहअस्तित्व ही बंगाल की सबसे बड़ी पहचान है।

लेकिन जब बात आती है भक्ति की अभिव्यक्ति की — जैसे देवी-देवताओं के प्रति भजन, स्तुति या काव्य रचना — तब भी क्या यह केवल किसी एक धर्म की सीमा में बंधी रहती है? इतिहास इसका उत्तर “नहीं” में देता है। बंगाल की भक्ति परंपरा इसका सबसे सुंदर उदाहरण है, जहाँ माँ काली की उपासना में कई मुस्लिम कवियों ने अपनी आस्था और कला दोनों को समर्पित किया।

ऐसे ही एक महान कवि थे काज़ी नज़रुल इस्लाम, जिन्हें “विद्रोही कवि” के रूप में जाना जाता है। उन्होंने काली माता पर इतने भक्ति गीत लिखे कि लोगों ने कहा, उनकी रचनाएँ संख्या और भाव दोनों में रामप्रसाद सेन से भी अधिक हैं। उनके गीतों में भक्ति के साथ-साथ उस सार्वभौमिक प्रेम की झलक मिलती है, जो धर्म की दीवारों को तोड़ देती है।

मुन्‍शी बेलायत हुसैन नामक कवि ने भी माँ काली के प्रति गहन श्रद्धा व्यक्त की। उनका प्रसिद्ध गीत ‘काली काली बोले काली, सहाय होले काली’ आज भी बंगाल के गाँवों और मंदिरों में गूंजता है। इस भक्ति ने ही उन्हें “कालीप्रसन्न” की उपाधि दिलाई।

हासन राजा जैसे सूफी कवि ने भी श्याम और श्यामा दोनों के प्रति प्रेम को एक साथ महसूस किया। उन्होंने अपनी कविताओं में लिखा कि जब हृदय में श्रीहरि बसते हैं, तो यमराज का भय भी मिट जाता है, क्योंकि उनके सहायक स्वयं शिवशंकर और माता काली हैं।

मिर्ज़ा हुसैन अली जैसे कवियों ने तो माँ काली के प्रति ऐसी निष्ठा दिखाई कि उन्होंने मृत्यु को भी मातृत्व की गोद समझ लिया। उनका विश्वास था कि जो काली के चरणों में शरण पाता है, उसे किसी भय की आवश्यकता नहीं।

यह परंपरा केवल भक्ति की नहीं, बल्कि मानवीय एकता की भी मिसाल है। इन कवियों ने अपने शब्दों से यह सिद्ध किया कि ईश्वर तक पहुँचने के रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन भाव एक ही होता है — प्रेम और समर्पण का।

भक्ति का यह रंग किसी धर्म या जाति का नहीं, बल्कि आत्मा का रंग है। यही वह सच्चा भारत है — जहाँ एक मुस्लिम कवि माँ काली की आराधना करता है, जहाँ एक हिंदू कवि सूफी संतों से प्रेरणा लेता है, और जहाँ हर हृदय एक ही स्वर में कहता है — “भक्ति ही सबसे बड़ा धर्म है।”

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